SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्त्तव्य षट्त्रिशिकाः – आचार्य श्री तुलसी द्वारा रचित एक लघु नीतिकाव्य है । राक्षसाधु-साध्वियों को साधन का सम्यग् दर्शन प्रदान करने के लिये प्रस्तुत कृति की रचना हुई है। इसकी रचना वि. सं. 2005 में छापर ( राजस्थान) में हुई इसका । हिन्दी अनुवाद मुनि बुद्धमल्ल जी द्वारा किया गया है। उक्त तीनों नीति-काव्यों के कंठीकरण की परम्परा ही है। 93 उपदेशामृतम् :- चन्दन मुनि द्वारा रचित नीति काव्य है। इसमें अध्ययन स और अनुभव लन्ध तथ्यों का सुन्दर विश्लेषण है । वर्तमान की कुप्रथाओं और समस्याओं की आलोचना के साथ उनके समाधान और परिहार का निदर्शन भी इसमें है । नीति की अनेक व्यवहारिक बातों का इसमें समावेश हुआ है । कवि ने एक स्थान पर कहा है :--- 1 कि वक्तव्यं ? कियत् ? कुत्र ? का वेला ? कीदृशी स्थितिः ? इत्यादि विदितं येन तं वाणी सुखयेत् सदा ॥ इसी प्रकार आवश्यकताओं की सीमाकरण की प्रेरणा देते हुए अन्यत्र कहा गया है - सर्वाणि खलु वस्तुनि सीमितानि विधाय च । तिष्ठ स्वस्थः क्षणं भ्रातः ! क्वापि नातः परं सुखम् ॥ प्रस्तुत कृति की रचना वि. सं. 2015 में भाद्र कृष्ण अष्टमी के दिन जालना (महा-. राष्ट्र में हुई थी । यह 16 चषकों में गुम्फित है । म हुई। प्रास्ताविक - श्लोक-शतकम् - चन्दन मनि के धार्मिक, नैतिक और औपदेशिक सुभाषित पद्य का संकलन है । प्रस्तुत कृति में 100 श्लोक हैं । इसकी रचना वि. सं. 2018 में बम्बई (महाराष्ट्र) इसका हिन्दी भाषा में अनुवाद मुनि मोहनलाल 'शार्दू ल' द्वारा किया गया है। प्रास्ताविक श्लोक- शतकजम् के नाम से मुनि धनराज जी 'प्रथम' की एक अन्य कृति और प्राप्त है । उसमें भी विभिन्न विषयों पर श्लोक रचना की गई है। यह कृति अप्रकाशित होने के कारण साधारण पाठक के लिये सुलभ नहीं है । नीति-काव्यों की शृंखला में मुनि वत्सराजजी का "चतुरायामः" भी एक सद्यस्क कृति है किन्तु वह भी अब तक अप्रकाशित है । तेरापंथ के साधु-साध्वियों ने संस्कृत भाषा के विकास के लिये हर नये उन्मेष को स्वीकार किया और उसमें सफलता प्राप्त की । ऐकाह निकशतक, समस्यापूर्ति, आशुकवित्व चित्रमय काव्य आदि उनमें प्रमुख हैं । ऐका निक शतकों के अतिरिक्त कुछ अन्य शतक काव्य भी लिखे गये हैं जिनमें मानवीय संवेदनाओं के साथ अन्तरंग अनुभूतियों का सम्यक चित्रण हुआ है। उनमें से कुछ प्रमुख : अनभूति शतकम् मिक्षु शतकम् कृष्ण शतकम् महावीर शतकम् चन्दनमुनि मुनि नथमल जी मनि छत्रमल जी 13
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy