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________________ 89 और सुबोध शब्दावली से संस्कृत के विद्यार्थी बहुत लाभान्वित हो सकते हैं । इसके छोटे वाक्यों में भी पर्यात भाव- गांभीर्य है । प्रस्तुत काव्य सात समुच्छ्वासों में रचित है । इसके हिन्दी अनुवादक छोनल चौपडा हैं । इसकी रचना वि. सं. 2005 के ज्येष्ठ मास में हुई है । 3. अश्रवीणा : --मुनि नथमलजी द्वारा मन्दाक्रान्ता छन्द में रचित सौ श्लोकों का खण्ड काव्य है । यह काव्य भतृहरि आदि विश्रुत कवियों द्वारा रचित काव्यों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम है। इस काव्य में एक और जहां शब्दों का वैभव है, वहां दूसरी अर्थ की गम्भीरता है । इसमें शब्दालंकार और अर्थालंकार दोनों एक दूसरे से बढे - चढे हैं । काव्यानुरागियों, तत्वजिज्ञासुओं तथा धर्म के रहस्य को प्राप्त करने को आकांक्षा वालों के लिये यह समान रूप से समादरणीय है । इस काव्य को कथावस्तु जैन आगमों से ग्रहण की गई है । भगवान् महावीर ने तेरह बातों का घोर अभिग्रह धारण किया था । वे घर-घर जाकर भी भिक्षा नहीं ले रहे थे क्योंकि अभिग्रह पूर्ण नहीं हो रहा था । उधर चन्दनबाला राजा की पुत्री होकर मी अनेक कष्टपूर्ण स्थितियों में से गुजर रही थी । उसका शिर मंडित था । हाथों-पैरों म जंजीरें थी । तीन दिनों को भूखी थी । छाज के कोने में उबले उड़द थे। इस प्रकार अभिग्रह की अन्य सारी बातें तो मिल गई किन्तु उसकी आंखों में आंसू नहीं थे । महावीर इस एक बात की कमी देखकर वापस मुड गए । चन्दनबाला का हृदय दुःख से भर गया । उसको आंखों में अश्रुधार बह चली । उसने अपने अश्रु प्रवाह को दूत बनाकर भगवान् को अपना सन्देश भेजा । भगवान् लौटे और उसके हाथ से उड़द ग्रहण किए । अश्रुप्रवाह के माध्यम से चन्दनबाला का सन्देश ही प्रस्तुत काव्य का प्रतिपाद्य है । इसकी रचना वि. सं. 2016 में कलकता प्रवास के अवसर पर हुई। इसका हिन्दी अनुवाद मुनि मिट्ठालाल जी द्वारा किया गया है । 4. रत्नपाल चरित्रम् — जैन पौराणिक आख्यान पर मुनि नथमल जी द्वारा रचित पद्यमय खण्ड काव्य है । पांच सर्गों में निबद्ध प्रस्तुत काव्य में कथानक को अपेक्षा कल्पना अधिक है । सहज शब्द - विलास के साथ भाव प्रवणता को लिये प्रस्तुत काव्य संस्कृत-भारती को गरिमान्वित करने वाला है । इसकी सम्पूर्ति वि. सं. 2002 में श्रावण शुक्ला 5 के दिन डूंगरगढ में हुई थी । इसका हिन्दी अनुवाद मुनि दुलहराज जी द्वारा किया गया है । खण्ड-काव्यों की परम्परा में उक्त काव्यों के संक्षिप्त परिचय के अनन्तर और भी अनेक काव्य हैं जिनका परिचय अवशिष्ट रह जाता है । संस्कृत विद्यार्थियों के लिये उनक अध्ययन का स्वतन्त्र महत्व है अतः उनमें से कुछ एक का नामोल्लेख करना आवश्यक और प्रासंगिक होगा । 1. पाण्डवविजयः 2. रौहिणेयः 3. माथेरान सुषमा माव-भास्कर काव्यम 5. बंकचल चरित्रम 4. 6. कर्बुर काव्यम् मुनि डंगरमलजी मुनि बुद्धमल्लजी मुनि नगराजजी धिरजी 'द्वितीय' मुनि कन्हैयालालजी मुनि मोहनलालजी 'शार्दू ल' ज्योति स्पलिंगा:-- चन्दन मुनि द्वारा रचित भाव प्रधान गद्य कृति है । कृतिकार का भावोद्वेलन वाणी का परिधान प्राप्त कर 56 विषयों के माध्यम से वाङ्मय के प्रांगण में उपस्थित हुमा है । सहज हृदय से निःसृत निर्व्याजभाव राशि में अकृत्रिम लावण्य के दर्शन होते हैं ।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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