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इस भावोद्वलन में मात्र भावनात्मक उल्लास ही नहीं अपितु सत्कर्म और सदाचरण की पगडंडियां भी अंकित हैं। इसकी रचना वि. सं. 2020 में बम्बई प्रवास में हुई थी।
2. तुला-अतुला:-मुनि नथमलजी द्वारा समय-समय पर आशुकवित्व, समस्यापूर्ति तथा अन्य प्रकार के रचित स्फुट श्लोकों का संग्रह है । प्रस्तुत कृति के पांच विभाग हैं। इसका हिन्दी भाषा में अनुवाद मुनि दुलहराज जी ने किया है ।
मुकुलम:-मुनि नथमलजी द्वारा रचित संस्कृत के लधु निबन्धों का संकलन है । इसमें प्रांजल और प्रवाहपूर्ण भाषा में छात्रोपयोगी 49 गचों का संकलन है । इसका विषयनिर्वाचन बड़ी गहराई से किया गया है । इसमें वर्णानात्मक और भावात्मक विषयों के साथ संवेदनात्मक विषयों का भी सन्धान किया गया है ।
प्रस्तुत कृति ज्ञान और अनुभव दोनों के विकास में सहयोगी बन सकती है । इसकी रचना वि. सं. 2004 में पडिहारा (राजस्थान) में हुई थी । मुनि दुलहराजजी ने इसका हिन्दी भाषा में अनुवाद किया है ।
उत्तिष्ठत! जाग्रत ! :-मुनि बुद्धमल जी द्वारा लिखित 71 लघु निबन्धों का संग्रह है । प्रस्तुत निबन्धों में दढ निश्चय, अट आत्म-विश्वास, गहरी स्पन्दनशीलता और अप्रतिम उदारता की भावनाएं प्रस्फुटित हुई हैं । साहित्य में हृदय की आवाज होती है । अतः वह सीधा हृदय का स्पर्श करता है । कुछ मानसिक कुंठाएं इतनी गहरी होती हैं कि जिन्हें तोडना हर एक के लिये सहज नहीं होता किन्तु साहित्य के माध्यम से वे अनायास ही टूट जाती हैं । प्रस्तुत कृति मानसिक कुंठाओं के घेरे को तोड़ कर आशा की आलोक रश्मि प्रदान करने में समर्थ बनी है।
इसकी रचना वि. सं. 2006-7 के बीच की है। इसका हिन्दी भाषा में अनुवाद मुनि मोहनलाल जी'शार्दल' ने किया है। दिल्ली से प्रकाशित होने वाले 'साप्ताहिक f में ये निबंध क्रमशः प्रकाशित होचके हैं। राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा यह कृति स्नातकीय (बी. ए. आनर्स) पाठ्यक्रम में स्वीकृत की गई है ।
संस्कृत भाषा में महाकवि जयदेव का 'गीतगोविन्द' तथा जैन-परम्परा में उपाध्याय विनयविजय जी का 'शान्त-सुधारस' प्रसिद्ध संगीत-काव्य है । संगीत काव्यों की परम्परा को तेरापंथ के साधु-साध्वियों ने अस्खलित रखा है । चन्दन मुनि का 'संवरसुधा' काव्य संगीत काव्यों की परम्परा में एक उत्कृष्ट कड़ी है। संवरतत्व पर आधारित विभिन्न लयों में संस्कृत भाषा की 20 गीतिकाएं हैं। इसकी रचना वि. सं. 2018 में दीपावली के दिन बम्बई में सम्पन्न हुई । मुनि मिट्ठालालजी ने इस का हिन्दी अनुवाद किया है। अन्य अनेक संगीतकाव्य जो अब तक अप्रकाशित हैं, वे भी भाव-प्रधान और रस-पूरित है। उनका उल्लेख भी यहो प्रासंगिक और उपयोगी होगा:
1 पंचतीर्थी 2 गीतिसंदोहः 3 संस्कृत गीतिमाला
चन्दनमुनि मुनि दुलीचन्द जी 'दिनकर' साध्वी संघमित्राजी