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का इन्होंने सम्पादन किया है। सम्मावित प्रन्यों की विस्तृत भूमिकायें भी इन्होंने संस्कृत में हती है। गुजराती और हिन्दी में भी इनकी लिखित एवं सम्पादित कई पुस्तके प्रकापित
37. आचार्य घासीलाल जी:-ये स्थानकवासी सम्प्रदाय के प्रसिद्ध माचार्य श्री बाहिरलाल जी के शिष्य थे। नका जन्म सं. 1941 बसवन्तगढ़ (मेवार) में हुमा पा।
संस्कृत मोर प्राकृत भाषा तथा जैनागम, भ्याकरण, काम्य, कोष मादि विषयों के श्रेष्ठ विद्वान् पे। इन्होंने स्थानकवासी सम्प्रदाय द्वारा मान्य 32 मागमों पर संस्कृत भाषा में विस्तृत
कायें लिखी और विविध विषयों में अनेक नेतन प्रन्यों का निर्माण किया । इनकी मौखिक रचनायें निम्नलिखित प्राप्त होती है :
शिवकोश, नानार्थ उदयसागर कोश, श्रीलाल नाममाला कोश, माहेत् व्याकरण, माहेत घु व्याकरण, आहेत सिद्धान्त व्याकरण, शान्ति सिन्धु महाकाव्य, लोकाशाह महाकाव्य, पूज्य थी छाल काव्य, लवजी मुनि काव्य, जनागम तत्व दीपिका, वृत्तबोध, तत्व प्रदीप, मुक्ति संग्रह, गृहस्थ कल्पतर, नागाम्बरमञ्जरी, नवं स्मरण, कल्याण मंगळ स्तोत्र, वर्षमान स्तोम मावि ।
38 बाचार्य हस्तिमल जी:-ये वर्तमान में स्थानकवासी समाज के प्रमुख माचार्यों में से है। संस्कृत भाषा के अच्छे विद्वान है। नन्दीसूत्र मादि मागम प्रन्यों पर इन्होंने संस्कृत भाषा में टीकाओं का निर्माण किया है। इनकी हिन्दी भाषा में कई कृतियां भी प्रकाशित हो चुकी है।
राजस्थान प्रदेश में अन्य गच्छों की अपेक्षा खरतरगच्छ का प्रभाव एवं प्रचार विशेष रहा है। खरतरगच्छ की अनेक शाखाओं का उद्भव, विकास और अवसान भी इस प्रदेश में ही हुआ है। अन्य शाखाओं के कतिपय साहित्यकारों की रचनायें मेरे विचार से इसी राजस्थान प्रदेश में ही हुई होंगी। इसी मनुमान के मॉधार पर कतिपय कैखको गोर पनकी कृतियों का यहां निर्देश करना मप्रासंगिक न होगा।
द्रपल्लीय शाखा:--
अभयदेवसूरि:- सोमतिलकरि:- संघतिलकसूरि:- दिवाकराचार्यःदेवेन्द्रसूरिः
जयन्त विजय महाकाम्य (1278) शीलोपदेशमाला टीका (1392), षड्दर्शनसमुच्चय टीका (1392),
कन्यानयन तीर्थकल्प सम्यक्त्वसप्तति टीका (1422), कुमारपालप्रबन्ध (1454),
धूतख्यिान दानोपदेशमाला (14वीं) दानोपदेशमाला टीका (1418), प्रश्नोत्तररत्नमाला टीका (1429), नवपद अभिनव प्रकरण टीका (1452) आचार दिनकर (1468) गौतमपृच्छा टीका (15वीं शती) संदेशरीसक टीका (1465)
पर्वमानसूरिःश्रीतिलक:लक्ष्मीचन्दः