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________________ 33. महोपाध्याय रामविनय (रूपचन्द्र):--समय 17341835 | खरतरगच्छ ओमकीर्तिशाला । गुरु दयासिह । ओसवाल मांचलिया मोत्र । जन्म नाम रूपचन्द्र जो बन्त तक प्रसिद्ध रहा । दीक्षा नाम रामविजय । दीक्षा 1755 बिल्हाबास । स्वर्गवास 1835पाली। कार्यक्षेत्र जोधपुर, बीकानेर । भनेक भाषामों मोर भनेक विषयों के प्रगाढ विद्वान् । प्रमुख रचनायें है: गौतमीय महाकाव्य (1807), गुणमाला प्रकरण, सिद्धान्त पन्द्रिका टीका, साध्वाचार पत्रिंशिका, महुर्तमणिमाला (1801), षभाषामय पत्र (1787) आदि । महो. रामविजय के शिष्य पुण्यशील गणि कृत जयदेवीय गीतगोविन्द की पति पर 'चतुर्विशति जिन स्तवनानि स्वोपज टीका सह और 'ज्ञानानन्द प्रकाश प्राप्त है । और इन्हीं के प्रशिष्य शिवचन्द्रोपाध्याय कृत अनेक कृतियां प्राप्त है। जिनमें से मुख्य ये हैं :-- ... प्रद्युम्न लीला प्रकाश (1879), विशतिपद.प्रकाश, सिख सप्ततिका, भावना प्रकाश, मूलराज गुणवर्णन समुद्रबन्ध काव्य (1861) और अनेक स्तोत्र । 34. महोपाध्याय क्षमाकल्याण :--समय 1801 से 1872 । खरतरगच्छ । गुरु अमृतधर्म । जन्म 1801 केसरदेसर। माल्डू गोत्र । दीक्षा 1812 । स्वर्गवास 1872 । इनकी विद्वत्ता के संबंध में मुनि जिनविजय जी ने तर्कसंग्रह के प्रकाशकीय वक्तव्य (पृ.2) में लिखा है:-- "राजस्थान के जैन विद्वानों में एक उत्तम कोटि के विद्वान् थे और भन्य प्रकार से अन्तिम प्रौढ पण्डित थे। इनके बाद राजस्थान में ही नहीं अन्यत्र मीइस श्रेणी का कोई जैन विद्वान नहीं हुमा " इनकी प्राप्त रचनाओं में मुख्य रचनायें निम्न हैं - __ तर्कसंग्रह फक्किका (1827), भूधातुवृति (1829), समरादित्य केवली चरित्र पूर्वार्ट, अम्बर चरित्र, यशोधरं चरित्र, गौतमीय महाकाव्य टीका, सूक्ति रत्नावली स्वोपन का सह, विज्ञान चन्द्रिका, खरतरगच्छ पटटावली, जीवविचार टीका, परसमयसार विचार संग्रह प्रश्नोत्तर सार्दशतक, साघु-प्रावक विर्षि प्रकाश, मष्टाहनिकादि पर्वव्याख्यान, चैत्यवन्दन चतुर्विशति मादि अनेकों ग्रन्थ एवं कतिपय स्तोत्र । 35. जिनमणिसागरसूरि :-समय 1944-2007 । खरतरगच्छ । गुरु महोपाध्याय सुमतिसागर । जन्म 1944बांकडिया बडगांव । जन्म नाम मनशी । दीक्षा 1980 पालीताणा। आचार्य पद 2000 बीकानेर । स्वर्गवास 2007 मालवाडा । सागरानन्दसूरि, विजय वल्लमसूरि और चौथमल जी आदि के साथ शास्त्रार्थ । प्रमुख कार्य आगमों का राष्ट्र भाषा में अनुवाद । कार्य क्षेत्र कोटा, बम्बई, कलकत्ता । जैन शास्त्रों के श्रेष्ठ विद्वान् । संस्कृत भाषा में एक ही कृति प्राप्त है-साध्वी व्याख्यान निर्णय । अन्य कृतियां षट्कल्याणक निर्णय, पर्युषणा निर्णय, क्या पृथ्वी स्थिर है ? देवार्चन एक दृष्टि, साध्वी व्याख्यान निर्णय, आगमानुसार मुंहपति निर्णय, देव द्रव्य निर्णय आदि हिन्दी भाषा में प्राप्त है। 36. बुद्धिमनि गणि:-समय लगभग 1950 से 20251 खरतरगच्छ श्री मोहन हाल जी परम्परा। गधी केशर मनि । संस्कृत, प्राकत, गजराती माषा और जैन साहित्य हे विशिष्ट विद्वान् । विहार क्षेत्र राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र । संस्कृत भाषा । इनको कल्पसूत्र टीका, कल्याणक परामर्श, पर्युषणा परामर्श आदि कई कृतियां प्रकाशित हो चुकी है। साधुरंगीय सूत्रकृतांग दीपिका, पिण्डविधि (3 टीका सहित) आदि अनेक ग्रन्थों
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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