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27. सूरचन्द्र :-- समय 17वीं शती । खरतरगच्छ । गुरु वीरकलश । कार्य क्षेत्र राजस्थान । दर्शन और साहित्य शास्त्र का प्रकाण्ड - पण्डित । प्रमुख रचनायें हैं :
स्थूलभद्रगुणमालाकाव्य [ ( 1680), जैनतत्वसार स्वोपज्ञ टीका सह ( 1679 ) ; अष्टार्थी श्लोक वृत्ति, पदैकविंशति, शांतिलहरी, श्रृंगार रसमाला (1659), पंचतीर्थी श्लेषालंकार चित्रकाव्य आदि ।
28. मेघविजयोपाध्यायः - समय लगभग 1685-1760 । तपागच्छ । गुरु कृपाविजय । कार्यक्षेत्र राजस्थान और गुजरात । बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न विशिष्ट विद्वान् एवं काव्य - साहित्य, व्याकरण, अनेकार्थ, न्याय, ज्योतिष, सामुद्रिक आदि अन्यान्य विषयों के प्रकाण्ड पण्डित । प्रमुख रचनायें हैं।
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सप्तसन्धान महाकाव्य ( 1760 ), दिग्विजय महाकाव्य, शान्तिनाथ चरित्र ( नैषधपाद - पूर्ति); देवानन्द महाकाव्य ( माघ पादपूर्ति), किरात समस्या पूर्ति, मेघदूत समस्यालेख (मेघदूत पादपूर्ति), लघुत्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र, भविष्यदत्त चरित्र, पंचाख्यान, चन्द्रप्रभा व्याकरण (1757 ), हेमशब्दचन्द्रिका, हेमशब्दप्रक्रिया, चिन्तामणि परीक्षा, युक्तिप्रबोध, मेघमहोदयवर्ष - बोध, हस्तसंजीवन, उदयदीपिका, वीसायन्त्रविधि, मातृका प्रसाद ( 1747 ), अर्हद्गीता आदि 38 कृतियां प्राप्त हैं ।
28. महिमोदय :- समय 18वीं शती । खरतरगच्छ । गुरु मतिहंस । कार्यक्षेत्र राजस्थान । ज्योतिष शास्त्र का विद्वान् । प्रमुख कृतियां हैं :--
स्टसिद्धि, जन्मपत्री पद्धति, ज्योतिष रत्नाकर (1722), पञ्चांगानयन विधि (1722) ; प्रेम ज्योतिष (1723), षट्पञ्चाशिकावृत्ति बालावबोध आदि ।
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यशस्वरसागर ( जसवंतसागर ) :-- समय 18वीं शती । तपागच्छ । गुरु यशःसागर । न्याय-वर्शन और ज्योतिष के श्रेष्ठ विद्वान् । कार्यक्षेत्र राजस्थान । निम्नांकित साहित्य प्राप्त है :
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विचारषत्रिशिका अवचूरि (1721), भावसप्ततिका (1740), जैन सप्तपदार्थ (1757 ); प्रमाणवादार्थ (1757 सांगानेर), वादार्थ निरूपण, स्याद्वादमुक्तावली, स्तवनन प्रहलाद वार्तिक (1760), यशोराजी राजपद्धति आदि ।
31. लक्ष्मीवल्लभोपाध्याय : -- समय 18वीं शती । खरतरगच्छ क्षेमकीर्तिशाखा । गुरु लक्ष्मीकीति । कार्यक्षेत्र राजस्थान । प्रमुख रचनाएं हैं :--
कल्पसूत्र टीका, उत्तराध्ययन सूत्र टीका, कालिकाचार्य कथा, कुमारसंभव टीका, मातृक धर्मोपदेश स्वोपज्ञ टीका सह, संसारदावा पादपूत्यत्मक पार्श्वनाथ स्तोत्र आदि ।
32. धर्मवर्द्धन :-समय 1700-1883-84 । खरतरगच्छ । गुरु विजग्रह जन्म 1700 | जन्मनाम धर्मसी । दीक्षा 1713 | उपाध्याय पद 1740 | स्वर्गवार 1783-84 के मध्य । प्रमुख रचनायें ह् वीरमक्तामर स्वोपज्ञ टीका सहित और अनेक स्तोत्र |