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कार्यक्षेत्र अधिकांशत: राजस्थान । सम्राट् जहांगीर द्वारा 'कविराज' पद प्राप्त । प्रमुख रचनायें हैं :
खण्डप्रशस्ति टीका! (1641), नेमिदूत. टीका (1644), दमयन्ती कथा पम्पू टीका (1646), रघुवंश टीका (1646), वैराग्यशतक टीका (1647), सम्बोध सप्तति टीका (1651), कर्मचन्द्रवंश प्रबन्ध टीका (1656), लघुशान्ति स्तवं टीका (1659); शीलोपदेशमाला लघु वृत्ति आदि 13 टीका ग्रन्थ । 'सव्वत्थशब्दार्य समुच्चय' 'अनेकार्थी ग्रन्थ और 'हुण्डिका (1657) संग्रह ग्रंथ है । गुणविनय के शिष्य गमतिकीति रचित दशाश्रुतस्कन्ध टीका और गुणकित्व षोडशिका भी प्राप्त है ।
24. श्रीवल्लभोपाध्याय :-समय लगभग 1620-1687 । खरतरगच्छ । गुरु शानविमलोपाध्याय । कार्यक्षेत्र-जोधपुर, नागौर, बीकानेर, गुजरात । महाकवि, बहुश्रुतज्ञ, व्याकरण-कोष के मूर्धन्य विद्वान् और सफल टीकाकार । प्रमुख कृतियां निम्नलिखित हैं:
विजयदेवमाहात्म्य काव्य, सहस्रदलकमलगर्भित अरजिन स्तव स्वोपज टीका. सहर विद्वत्प्रबोधकाव्य, संघपति रूपजी वंश प्रशस्ति, मातृकाश्लोकमाला, चतुर्दशस्वरस्थापन वादस्थल आदि 8 मौलिक कृतियां ।
हैमनाममाला शेषसंग्रह टीका, हैमनाममाला. शिलोञ्छ टीका, हैमलिंगानुशासन दुर्गप्रदप्रबोध टीका, हैमनिघण्टुशेष टीका, अभिधानचिन्तामणि नाममाला टीका, सिरहेमशब्दानुशासन टीका, विदग्धमुखमण्डन टीका आदि 12 टीका ग्रन्थ ।
25. सहजकीर्ति :-समय 17वीं शती, । खरतरगच्छ । गुरु हेमनन्दन । कार्यक्षेत्र राजस्थान । प्रमुख रचनायें है :
कल्पसूत्र टीका (1685), अनेकशास्त्रसमुच्चय, गौतमकुलक. टीका (1671), फलवद्धि पार्श्वनाथ माहात्म्य काव्य, वैराग्यशतक, अजुप्राज्ञ व्याकरण, सारस्वत टीका (1881) सिखशब्दार्णव नामकोष, शतदलकमलबद्ध पार्श्वनाथ स्तोत्र आदि ।
26. गुणरत्न :-समय 17वीं शती । खरतरगच्छ । गुरु विनयप्रमोद । न्याय लक्षण, काव्य-शास्त्र के प्रौढ विद्वान् । कार्यक्षेत्र राजस्थान । प्रमुख रचनायें है:
काव्यप्रकाश टीका, तर्कभाषा दीका, सारस्वत टीका (1641),रघुवंश टीका (1687) मंगलवाद यादि ।
1.4. म.विनयसागर द्वारा सम्पादित होकर राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोध
से प्रकाशित ।
2. 3. म.विनयसागर द्वारा सम्पादित होकर सुमतिसदन, कोटा से प्रकाशित ।
5. म. विनयसागर द्वारा सम्पादित होकर का. द. भारतीय संस्कृति विद्या मन्दिर
वहमदाबाव से प्रकाशित ।