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21. जिनराजसूरि :-- समय 1647-1699 । खरतरगच्छ । गुरु जिनसिदसूरि । जन्म 1647 बोकानेर । बोहिथरा गोत्रीय धर्मसी धारलदे के पुत्र । जन्म नाम खेतसी । दीक्षा 1656 | दीक्षा नाम राजसमुद्र । उपाध्याय पद 1668 आसाउल | आचार्य पद 1674 मेडता । स्वर्गवास 1699 1 1675 शत्रुञ्जय खरतरवसही, लोद्रवा तीर्थ और सहस्रों जिनमूर्तियों के प्रतिष्ठापक । नव्यन्याय और साहित्यशास्त्र के प्रकाण्ड पण्डित । प्रमुख रचनाएं है :
टीका ।
नैषघीय महाकाव्य जैनराजी टीका (श्लोक परिमाण 36000 ) और भगवती सूत्र
22. महोपाध्याय समयसुन्दर 1:-- समय लगभग 1610-1703 । खरतरगच्छ । गुरु सकलचन्द्र गणि । सांचौर निवासी प्राग्वाट ज्ञातीय रूपसी लीलादेवी के पुत्र । जन्म लगभग 1610 | गणिपद 1640 जैसलमेर । वाचनाचार्य पद 1649 लाहोर । उपाध्याय पद 1671 लवेरा । स्वर्गवास 1703 | कार्य क्षेत्र राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, सिन्ध और पंजाब | सिद्धपुर (सिन्ध) का अधिकारी मखनम महमूद शेख काजी, जैसलमेर के रावल भीर्मासह, खंभात, मंडोवर और मेडता के शासकों को प्रभावित कर जीवहसा निषेध और अमारी पटह की घोषणा करवाई । 17वीं शती का सर्वतोमुखी और सर्वश्रेष्ठ विद्वान् । सं. 1649 में काश्मीर विजय के समय सम्राट अकबर के सन्मुख 'राजा नो ददते सौख्यम्' चरण के प्रत्येक अक्षर के एक-एक लाख अर्थ अर्थात् आठ अक्षरों के आठ लाख अर्थ कर मष्टलक्षी ग्रन्थ रचा । प्रमुख प्रमुख कृतियां निम्नांकित हैं:
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सारस्वत वृत्ति, सारस्वत रहस्य, लिंगानुशासन अवचूर्णि, अनिट्कारिका, सारस्वतीय शब्द रूपावली आदि व्याकरण के ग्रन्थ ।
अष्टलक्षी, मेघदूत प्रथमपद्यस्य त्रयो अर्थाः, आदि अनेकार्थी साहित्य |
हसूरि पदोत्सव काव्य ( रघुवंश पादपूर्ति), रघुवंश टीका; कुमारसंभव टीका, मेघदूत टीका, शिशुपालवध तृतीय सर्ग टीका, रूपकमाला अवचूरि, ऋषभ भक्तामर (भक्तामर पादपूर्ति) आदि काव्य ग्रन्थ एवं टीकायें ।
भावशतक, वाग्भटालंकार टीका, वृत्तरत्नाकर टीका, मंगलवाद आदि लक्षण न्याय के ग्रन्थ ।
कल्पसूत्र टीका, दशवेकालिक सूत्र टीका, नवतत्व प्रकरण टीका; समाचारी शतक विशेष संग्रह, विशेष शतक, गाथा सहस्री, सप्तस्मरण टीका आदि अनेकों आगमिक सैद्धांतिक और स्तोत्र साहित्य पर रचनायें एवं टीकायें ।
समयसुन्दर के शिष्य वादी हर्षनन्दन की निम्नलिखित रचनायें प्राप्त हैं :- मध्याह्न पास्पानपद्धति (1673), ऋषि मण्डल वृत्ति (1704), स्थानांग सूत्र गाथागत वृत्ति (1705), उत्तराध्ययन सूत्र टीका (1711) आदि ।
23. महोपाध्याय गुणविनयः -- समय लगभग 1615-1675 | खरतरगच्छ; क्षेमकीति शाखा । गुरु जयसोमोपाध्याय । वाचक पद 1649 । स्वर्गवास 1675 के लगभग ।
टि. 1. देखें, म. विनयसागर महोपाध्याय सममसुन्दर