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___16. जयसागरोपाध्यायः--समय लगभग 1450-1515 खरतरगच्छ । गुरु जिनराजसूरि । जन्म नाम जयदत्त । माता-पिता दरडागोत्रीय आसराज और सोखू । इन्हीं के भाई मण्डलीक आदि ने आबू में खरतरक्सही का निर्माण करवाया। कार्यक्षेत्र-जैसलमेर, आबू, गुजरात, सिन्ध, पंजाब, हिमाचल । श्रीवल्लम के कथनानुसार इन्होंने सहस्रों स्तुति. स्तोत्रों की रचना की थी। मुख्य कृतियां निम्न है :
विज्ञप्ति त्रिवेणी (1484), पृथ्वीचन्द्र परित्र (1503), जैसलमेर शान्तिनाथ जिनालय प्रशस्ति (1493), संदेहदोलावली टीका, गुरुपारतन्त्र्य स्तोत्र टीका, मावारिवारण स्तोत्र टीका आदि एवं अनेकों स्तोत्र । विज्ञप्ति त्रिवेणी एक ऐतिहासिक विज्ञप्ति पत्र है । नगरकोट, कांगडा आदि तीर्थों का दुर्लभ विवरण इसमें प्राप्त है ।
17. कीर्तिरत्नसूरिः-समय 1449-1525 | खरतरगच्छ । गुरु जिनवर्धनसूरि । जन्म 1449 । नाम देल्हाकुवर । माता-पिता शंखवाल गोत्रीय शाह कोचर के वंशज दीपा और देवलदे । दीक्षा 1463, नाम कीर्तिराज । वाचनाचार्य 1470 । उपाध्याय पद 1480 महेवा । आचार्यपद 1497 जैसलमेर । आचार्य नाम कीतिरत्नसूरि । स्वर्गवास 1525 वीरमपुर । नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ के प्रतिष्ठापक । इनकी शिष्य परम्परा कीर्तिरत्नसूरि शाखा के नाम से चली आ रही है । नेमिनाथ महाकाव्य इनकी विशिष्ट रचना है ।
18. जिनहससूरिः-समय 1524 से 1582 । खरतरगच्छ । गुरु जिनसमुद्रसूरि । जन्म 1524 । सत्रावा निवासी चोपडा गोत्रीय मेघराज और कमलादे के पुत्र । दीक्षा 15 35 बीकानेर । आचार्य पद 1555 । बादशाह को धौलपुर में चमत्कार दिखाकर 500 कैदियों को छुडवाया । स्वर्गवास 1582 । आचारांगसूत्र दीपिका (1572 बीकानेर) इनको प्रमुख रचना है।
19. युमप्रधान जिनचन्द्रसूरिः-समय 1598-1670 । खरतरगच्छ । गुरु बिन माणिक्यसरि । जन्म 1598, नाम सुलतान कुमार । बडली निवासी रीहड गोत्रीय श्रीवंत एवं सिरियादेवी के पुत्र । दीक्षा 1604 । दीक्षा नाम सुमतिषीर । बाचार्यपद 1612 जैसलमेर । क्रियोवार 1614 बीकानेर । 1617 पाटण में सर्वगच्छीय आचार्यों के सम्मुख धर्मसामरोपाध्याय को उत्सूत्रवादी घोषित किया। 1648 लाहोर में सम्राट अकबर से मिलन और प्रतिबोध । अकबर द्वारा युगप्रधान पद प्राप्त । स्वर्गवास 1670 बिलाडा । कार्यक्षेत्र राजस्थान, गुजरात, पंजाब । अनेकों प्रतिष्ठायें एवं कई यात्रा-संघों का संचालन । प्रमुख मक्त बीकानेर के महामंत्री कर्मचन्द्र बच्छावत बदेर अहमदाबाद के श्रेष्ठि शिवा सोम । मुख्य कृति पौषधविधि प्रकरण टीका (1617) है।
20 महोपाध्याय पुण्यसागर:-समय 16वीं एवं 17वीं शतो । खरतरगच्छ । गुरु जिनहंससूरि । प्रमुख रचनायें हैं :
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र टीका (1645 जैसलमेर) और प्रश्नोत्तरैकषष्टिशत काव्य टीका (1640 बीकानेर)।.
इनके शिष्य पद्मराज भी संस्कृत के अच्छे विद्वान थे। जिनकी भावारिवारण पादपूर्ति स्वोर टीका सह (1658, जैसलमेर), 'चित' दण्डक स्तुति टीका (1644 फलवद्धि) भाविकरुतियां प्राप्त है।