SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 6 9. अभयतिलकोपाध्याय :-समय 13वीं-14 वीं शती । खरतरगच्छ । गुरु जनश्वरसूरि वितीय । दीक्षा 1201 जालोर । उपाध्याय पर 1310 । न्याय और काम्यभारत के प्रौढ विद्वान् । प्रमुख रचनायें है:-हेमचन्द्रीय संस्कृत श्याश्रय काव्य टीका (1313), पंचप्रस्थान न्यायतकं व्यास्था, पानीय बारस्यल। 10. जिनप्रभसूति समय मगभग 1326 से 1393 | मधु बरतरगच्छ । गुर जिनसिंहसूरि। जन्मस्थान मोहिलवाडी (अन्सन के आसपास)। माता-पिता श्रीमॉलबशीप ताम्बीगोत्रीय श्रेष्ठी रत्नपाल और खेतलदेवी। दीक्षा 1326। भाचार्यपद 1341 । महाभाविक एवं चमत्कारी बाचार्य। मुहम्मद तुगलक के प्रतिबोधक एवं धर्मगुरु। कन्यानयनीय महावीर प्रतिमा के उद्धारक । विहार क्षेत्र-राजस्थान, गुजरात, विहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, दक्षिण, कीटक मोर लिंग । कार्यक्षेत्र दिल्ली और देवगिरि। प्रमुख बनायें: प्रोणक परित्र (श्याश्रय काव्य, 1358), कल्पसूत्र संदेह-विषौषधि टीका (1364), साधुप्रतिक्रमणसूत्र टीका (1384), षडावश्यक टीका, बनुयोग चतुष्टय व्याख्या, प्रवज्याभिधान रीका, विषिमार्गप्रथा (1383), कातन्त्रविम्रम टीका (1352), अनेकार्थसंग्रह टीका, शेष संग्रह टीका, विदग्धमुखमण्डन टीका (1388), गायत्री विवरण, सूरिमन्त्रवृहत्कल्प विवरण, रहस्य कल्पद्रुम और विविध तीर्थ-कल्प आदि अनेकों ग्रन्थ । स्तोत्र-साहित्य में लगभग 80 स्तोत्र प्राप्त है। तीर्थों का इतिहास-इस दृष्टि से विविधतीर्थकल्प भभूतपूर्व, मौलिक भौर ऐतिहासिक तथ्यों से परिपूर्ण रचना है। ____ 11. जिनकुशलसूरिः-समय 1337 से 1389 । खरतरगछ । गुरु कलिकाल कल्पतर जिनचन्द्रसूरि । श्वेताम्बर समाज में तीसरे दादाजी के नाम से प्रसिखतम भाचार्य । भन्म 1337 सिवाना । माता-पिता छाजहर गोत्रीय ठ. जैसल एवं जयतश्री । दीक्षा 1346 सिवाना । वाचनाचार्य पद 1375 नागौर । दीक्षा नाम कुशलकीति । भाचार्य पद 1377 पाटण । स्वर्गवास 1379 देवराजपुर (देरावर) । सं. 1383 बाडमेर में रचित. "चैत्यवन्दनकुलक वृत्ति" इनकी मुख्य कृति है । कई स्तोत्र भी प्राप्त है । 12. जिनवर्द्धनसूरि:--समय 15वीं शती । खरतरगच्छ । गुरु जिनराजसूरि । 'आचार्य पद 1461 देवकुलपाटक । इनके समय में खरतरगच्छ की पिप्पलक शाखा का 1469 जैसलमेर में उद्भव हुआ । कार्यक्षेत्र जैसलमेर और मेवाड । 1473 जैसलमेर में लक्ष्मणविहार की प्रतिष्ठा । सप्तपदार्थी टीका (1474), वाग्भटालंकार टीका, प्रत्येकबुद्ध चरित्र और सत्यपुरमंडन महावीर स्तोत्र इनकी मुख्य कृतियां हैं । - 1. द्रष्टव्य, म. विनय सागर : शासन प्रमाक आचार्य जिनप्रेम और उनका साहित्य।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy