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________________ धर्मशिक्षा प्रकरण, संघपट्टक, श्रृंगारशतक, प्रश्नोत्तरे कषष्टिशतकाव्य, अष्ट सप्ततिका अपरनाम चित्रकूटीय वीर चैत्यप्रशस्ति ( 1163) एवं भावारिवारण स्तोत्रादि अनेकों स्तोत्र । 64 सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार, आगमिक वस्तुविचारसार, पिण्डविशुद्धि, स्वप्नस तिका, द्वादशकुलक एवं कतिपय स्तोत्र प्राकृत भाषा में हैं । 6. जिनपतिसूरि--- -- समय 1210-1277 । खरतरगच्छ 1 गुरु मणिधारी जिनचन्द्रसूरि । जन्म 1210 विक्रमपुर ( बीकमपुर, जैसलमेर के निकट ) | माता-पिता माल्हू गोत्रीय यशोवर्धन एवं सूहवदेवी । दीक्षा 1217 | दीक्षानाम नरपति । आचार्य पद 1223 | स्वर्गवास 1277 । मुख्यकार्य 1228 आशिका में नृपति भीमसिंह के समक्ष महाप्रामाणिक दिगम्बर विद्वान् के साथ शास्त्रार्थ में विजय, 1239अजमेर में अन्तिम हिन्दू सम्रट् पृथ्वीराज चौहान की सभा में पद्यप्रभ के साथ शास्त्रार्थ में विजय, और प्रद्युम्नाचार्य के साथ हुए शास्त्रार्थ में विजय । प्रमुख रचनायें हैं :-- संघपट्टक वृहद्वृत्ति, पञ्चलिंगी प्रकरण टीका, प्रबोधोदय वादस्थल और कतिपय स्तोत्र | 7. अतिसूरि । जिनपालोपाध्याय -- समय 1217 से 1311 । खरतरगच्छ । गुरु जिनदीक्षा 1225 पुष्कर । वाचनाचार्य 1251 कुहियपग्राम । उपाध्याय पद 1269 जालोर । 1311 पालनपुर में स्वर्गवास । 1273 बृहद्वार में नगरकोट्टीय राजाधिराज पृथ्वीचन्द्र की सभा में काश्मीरी पण्डित मनोदानन्द के साथ शास्त्रार्थ में विजय । चन्द्रतिलकोपाध्याय श्रौर प्रबोधचन्द्रगणि के विद्यागुरु । स्वदर्शन के साथ न्याय, अलंकार, साहित्य-शास्त्र के प्रौढ विद्वान् एवं सफल टीकाकार | प्रमुख कृतियाँ हैं। --- सनत्कुमारचक्रिचरित महाकाव्य 2 षट्स्थानकप्रकरण टीका ( 1262 ), उपदेश रसायन विवरण (1292), द्वादशकुलक विवरण ( 1293 ), धर्मशिक्षा विवरण ( 1293 ), चर्चरी विवरण ( 1294 ) और युगप्रधानाचार्य गुर्वावली सनत्कुमारचक्रिचरित शिशुपालवध की कोटि का श्रेष्ठ वार्य गुर्वावली ऐतिहासिक दृष्टि से एक अद्वितीय रचना है । (1305) आदि । है और प्रधाना 8. लक्ष्मीतिलकोपाध्याय -- समय लगभग 1275 से 1340 । खरतरगच्छ । गुरु जिनेश्वरसूरि द्वितीय । दीक्षा 1288 जालोर । बाचनाचार्य पद 1312 । उपाध्याय 1317 जालोर । सं. 1333 में जिनप्रबोधसूरि की अध्यक्षता में जालोर से निकले तीर्थयात्रा संघ में सम्मिलित थे । अतिकोपाध्याय और चन्द्रतिलकोपाध्याय के विद्यागुरु | पूर्णकलश गणि रचित 'प्राकृत द्वयाश्रय काव्य टीका' ( 1307), अभयतिलक रचित 'पंचस्थान न्यायतर्क व्याख्या', चन्द्रतिलक रचित 'अभयकुमार चरित्र' ( 1312 ), प्रबोधचन्द्र गणि कृत 'संदेहदोलावली टीका' ( 1320 ), धर्मतिलक रचित 'उल्लासिस्तोत्र टीका ' ( 1322 ) आदि अनेकों ग्रन्थों के संशोधक । महाकवि एवं सार्वदेशीय विद्वान् । प्रमुख रचनायें हैं : प्रत्येकबुद्धचरित्र महाकाव्य ( 1311 ) और श्रावक धर्म वृहद्वृत्ति ( 1317 जालोर) । 1. देखें, खरतरगच्छालङ्कार युगप्रधानाचार्य गुर्वावली | 2. म. विनयसागर द्वारा सम्पादित होकर राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान जोधपुर से प्रकाशित ।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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