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वैज्ञानिकों की दृष्टि से सूर्य का परिवार
ही छोटा है, इसलिए ये दोनों भाई-बहन कहलाते हैं । वहां की तेज गरमी के कारण प्राणियों के लिए प्राण वायु ( आक्सिजन ) व जलमय बाप है या नहीं, इसके संबंध में ज्योतिषियों व वैज्ञानिकों में दो मत हैं। जिस घने वातावरण से यह आवृत है, उससे अनुमान किया जाता है, गर्द के भयंकर तूफानों से उसकी सतह प्रताड़ित हो रही होगी ।
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पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा एक वर्ष में पूरी करती है, औसत ९ करोड़ ३० लाख मील की दूरी से । यों यह अपनी धुरी पर एक बार धूम लेती है एक दिन-रात - २४ घंटे में तीन सौ पैंसठ दिन से तनिक कम समय में यह सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करती है, और यह समय है इसका एक वर्ष । वर्ष को पूरे दिनों का मानने के लिए हर चौथे वर्ष फरवरी मास में एक दिन बढ़ाया जाता है । फिर भी परिक्रमा काल में चौथाई दिन पूरा नहीं लगता, इसलिए उन शताब्दी वर्षों में, जिनमें ४०० का भाग नहीं लगता (जैसे १७००, १८००, १९०० में) वह एक दिन नहीं बढ़ाया जाता । फिर भी हिसाब सही नहीं बैठता । अतएव ४०० से विभाजित हो सकने पर भी २००० की सन में एक दिन बढ़ाया जायेगा |
पृथ्वी पत्थर की एक गेंद के समान है, जिसके भीतर पिघली धातुएं समाविष्ट हैं इसका सात बटा दस भाग पानी से आवृत है । इसका वायुमंडल पूरित है नाइट्रोजन आक्सिजन, जलमय बाष्प, आरगोन, कारबन
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डाइआक्साइड व अन्य गैसोंसे । ज्यों-ज्यों पृथ्वी से दूर होते जाइये, यह वायुमंडल पतला होता जायेगा । आकाश में छोड़े गये रोकेटों से पता लगा है कि दो हजार मोल की दूरी पर भी इस वायुमंडल के यत्किचित् लक्षण वर्तमान हैं।
पृथ्वी का अपना उपग्रह भी है - चंद्रमा । चंद्रमा के जन्म का पता नहीं । यह मान्यता रही है कि चंद्रमा पृथ्वी - पुत्र है, आदिकाल में उसमें से निकलकर अलग बना हुआ एक उपग्रह | कुछ ज्योतिषी यह मानते हैं कि यह एक अलग छोटा-सा ग्रह है, जो पांच करोड़ वर्ष पहले भटक गया और अपने भ्रमण में पृथ्वी के आकर्षण से पकड़कर उसके चारों और घूमने लगा ।
मंगल पृथ्वी के पश्चात् है, वह ६८७ दिन में सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करता है, १४ करोड़ २० लाख मील की औसत दूरी से । इस नक्षत्र का व्यास पृथ्वी से आधे से भी थोड़ा कम है । यह अपनी धुरी पर साढे चौबीस घंटे में एक चक्कर लगाता है । पृथ्वी से ११ मील ऊंचाई पर जितना पतला वायुमंडल है, अनुमान किया जाता है, उतने पतले वायुमंडल से मंगल आवृत है । उसके वातावरण में आक्सिजन व जलयुक्त बाष्प होने का अनुमान लगाया गया है । वहां के आकाश में यदा-कदा बादल भी दिखाई देते हैं । अन्यथा वहां का आकाश सर्वांशतः सर्वदा स्वच्छ रहता है, जिससे वहां की सतह दिखाई देती रहती है ।
मंगल की सतह रंग में ललाई लिये है,
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