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तत्वज्ञान स्मारिका शून्य नहीं रहता है, अतः उसी स्थान (आकाश अवधारणा का आधुनिक विज्ञान से कहां तक -प्रदेश) में अनन्तानन्त पुद्गलपिण्डों का समा- तालमेल है ? यह प्रश्न भी विचारणीय है । हित होना सम्भव है।
सर्व प्रथम तो हमें यह देखना है कि जैन.. कोई घनीभूत से घनीभूत पुद्गल-पिण्ड भी दर्शन के षट् द्रव्यों की धारणा विश्व की व्याख्या आकाशरहित नहीं होता है, अर्थात् उसमें | के लिए क्यों आवश्यक है ? सदैव ही अवगाहन-शक्ति बनी रहती है और
दिक् (स्पेस), काल (टाइम) और पुद्गल इसलिए वह दूसरे अनन्त परमाणुओं एवं पुद्गल |
(मेटर) ये तीन तत्त्व तो विश्व के मूल आधार पिण्डों को अपने में समाहित कर सकता है
है। इनके बिना विश्व की कल्पना नहीं की जा और यह सम्भावना कभी समाप्त नहीं होती है।
सकती है। .. (४) यह भी सम्भव है लोकाकाश को असंख्य-प्रदेशीय केवल इसीलिए कहा गया हो
दिक् और काल तो विश्व की प्राथमिक कि लोक की सीमितता बताना था, यदि अनन्त
शर्ते हैं, क्योंकि विश्व के कारणभूत पुद्गल प्रदेशी कहते तो लोक असीम (infinite ) | द्रव्य का अस्तित्व किसी काल और किसी स्थान हो जाता । वस्तुतः तो वह अनन्त-प्रदेशी ही है। में ही सम्भव है ।
(५) यह भी सम्भव है कि परमाणु के चाहे आइन्स्टीन के सापेक्षतावाद ने यह उत्कृष्ट आकार को लेकर यह माप बताया गया | सिद्ध कर दिया हो कि दिक् और काल की हो कि एक आकाश-प्रदेश एक परमाणु के | अवधारणाएँ गति-सापेक्ष है, किन्तु यह सापेक्षता आकार का है।
दिक् और काल के सम्बन्ध में ज्ञान की सापेक्षता जैसे समय का माप परमाणु की जघन्य । है और उनके अस्तित्व की नहीं है, क्योंकि इन गति के आधार पर किया है, अर्थात जघन्य गति | अमूर्त-सत्ताओं को मानवीय-ज्ञान किसी ऐन्द्रिक से एक परमाणु जितने काल में एक आकाश | अनुभूति के तथ्य के सन्दर्भ में ही समझ सकता प्रदेश से दूसरे आकाश प्रदेश में पहुंचता है। है और वह तथ्य गति है । गति उन्हें समझने वही एक समय (काल का सबसे छोटा भाग) | का माध्यम है, किन्तु इसके विपरीत यह भी का माप है।
कहा जा सकता है कि गति की अवधारणा उत्कृष्ट-गति से तो एक परमाणु एक हो । स्वयं दिक् (आकाश) और काल की अवधारणा समय में विश्व के एक छोर से दूसरे छोर तक पर आधारित है। गति, दिक् एवं कालसापेक्ष है । ( अर्थात् १४ राजू ) की यात्रा कर लेता है। जैन दार्शनिकों के अनुसार दिक् (आकाश) - अस्तिकाय विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में जैन- और काल के कार्य (फंक्शन) अलग-अलग है । दर्शन में स्वीकृत पंच अस्तिकाय एवं काल की दिक् (स्पेस) स्थान प्रदान करता है, तो काल
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