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________________ सूर्य प्राप्ति के अनुसार सूर्य गतिशील है। [ २९ प्रकाश करके पश्चिम के चरिमांत में संध्या समय पश्चिम-विभाग में प्रकाश रहे तब उत्तर-दक्षिण आकाश में प्रवेश कर अधो लोक में आता है। विभाग में रात्रि होती है। वहाँ वह प्रकाश करता है। फिर पृथ्वीमें से इस प्रकार वे दोनों सूर्य जम्बूद्वीप के दक्षिणनिकलकर लोक के अन्त में प्रभात में सूर्य उत्तर विभाग में रात्रि व पूर्व–पश्चिम विभाग में आकाश में रहता है । इस तीसरे मत से यह प्रकाश रहते हुए जम्बूद्वीप की पूर्व-पश्चिम लोक वर्तुलाकारवाला है ऐसा होता है। इससे सूर्य | रेखा आदि प्रभात-रात हुए दोनों सूर्य आकाश में प्रकाश करते हैं" । २।९ दिन को उपर के भाग में और रात्रि को नीचे के भाग में प्रकाश करता है । जहाँ प्रकाश रहता है इस विवरण से दो सूर्य होनेका स्पष्टीकरण मिलता है । वहाँ दिन और जहाँ अदृश्य होता है वहाँ रात्रि । यह मत राजप्रसिद्ध व विदेशी प्रजा का है। दूसरे प्राभूत के दूसरे प्राभृत में सूर्य किस प्रकार चलता है ? इस प्रश्न का समाधान किया उक्त तीनों मतवालों में विशेषता है, जो गया है। इस प्रकार है - तथा तीसरे प्राभृत प्राभृत में यह बताया (१) सूर्य का विमान नहीं है, देवतारूप गया है कि हरएक मुहर्त में सूर्य कितना चलता सूर्य नहीं है, परन्तु किरणों के संघातरूप गोला- | है ? इस सम्बन्ध में चार मत बताये गये हैं । यथाकार है । लोकों के अनुभव से प्रतिदिन पूर्व दिशा (१) एक एक मुहूर्त में छः हजार योजन के आकाश में उत्पन्न हो सर्व स्थान प्रकाश (२) एक एक मुहूर्त में पांच हजार योजन रहता है। (३) ----,, - चार हजार योजन (२) दूसने मतानुसार यह देवता रूप सूर्य (४) -------,, ---- छः हजार, पाँच तथाविध जगत के स्वभाव से आकाश में उत्पन्न हजार व चार हजार योजन चलता है। होता है और अस्त होता है। आगे सूर्य की इन गतियों का औचित्य (३) तीसरे मत के अनुसार-यह देवता- प्रतिपादित किया गया है कि कौन-सी गति रूप सूर्य सदैव स्थित पृथ्वी पर प्रदक्षिणा किस हेतु से उचित है। करता करता है।" आठवें प्राभृत के अंत में कहा गया है आगे पुनः तीन मत आकाशोदय व समु " ढाई द्वीप में १३२ चंद्र, १३२ सूर्य निरंतर परिभ्रमण करते हैं । " द्रोदय के रह गए हैं। दूसरे प्रामृत के प्रथम प्राभूत के अंतमें कहा गया है कि यहाँ श्री सूर्यप्रज्ञप्ति के आंशिक विवरण को प्रस्तुत किया गया है, जिससे यह स्पष्ट हो __ "वे दोनों में एक सूर्य दक्षिण दिशा के | | जाता है किविभाग में प्रकाश करे और दूसरा उत्तर दिशा श्री सूर्यप्रज्ञप्ति में सर्वत्र सूर्य को ही गतिके विभाग में प्रकाश रहे, तब जम्बूद्वीप के पूर्व - मान बताया गया है । सम्पूर्ण विवरण के लिए पश्चिम विभाग में रात्रि होती है। और सब | समय एवं क्षण की अत्यंत आवश्यकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003177
Book TitleTattvagyan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year1982
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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