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________________ २८ तत्त्वज्ञान स्मारिका कर सबके अभ्यंतर मंडल में चाल चले तब यह प्रथम प्राभृत के छठे प्राभृत में एक रात्रिकाल-कितने रात्रि-दिनका होवे ? दिन में सूर्य कितने क्षेत्र स्पर्श कर चलता है"उत्तर :-यहाँ ३६६ तीन सो छाछठ दिन इस विषय में विस्तार से प्रकाश डाला गया है का काल होवे ।" और आठवें प्राभृत में प्रमाण कहा गया है। . प्रश्न:-" पूर्वोक्त काल में सूर्य कितने मंडलों। इनमें भी सूर्य के गतिशील होने के प्राप्तिमें चलता है ? कितने मंडलों में एक समय विवरण है। चलता है और कितने मंडलों में दो समय प्रथम प्राभूत के अंत में सूर्य का मार्ग चलता है? ५०९ तथा ५१० योजन का बताया गया है। उत्तरः-सामान्यतः सूर्य १८४ मंडल में यदि सूर्य परिभ्रमण नहीं करता होता तो चलता है, जिसमें से १८२ मंडल में सूर्य दो। फिर उसके मार्ग की लम्बाई का विवरण क्यों समय चलता है, और प्रथम एवं अंतिम मंडल | दिया जाता ? यह विचारणीय है । में एक समय चलता है, क्योंकि बीच के १८२ श्री सूर्यप्रज्ञप्ति के प्राभृत में सूर्यकी तिरछी मंडलों में सूर्यका आना व जाना होने से दो गति का विवरण है। समय चलता है और प्रथम व अंतिम मंडल में इस प्राभृत का प्रारंभिक विवरण बहुत ही जाकर फिर दूसरे पर आ जाता है । इससे -क्षीवर्य दोनों मंडलों में एक ही समय चलता है।" प्रश्नः-भगवन् ! सूर्य की तिरछी गति उस (सूर्यप्रज्ञप्ति १।४-५) | प्रकार की है ?" इसी विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि उत्तर:-" अहो शिष्य ! इसमें अन्यतीर्थीयों सूर्य परिभ्रमण करता है। इससे आगे सूर्य- | को प्ररूपणारूप आठ पडिवत्तियाँ कही है। प्रज्ञप्ति में दिनरात्रि का विवरण किया गया है । | उनमें से कितनेक ऐसा कहते हैं कि:वहाँ भी स्पष्ट हो जाता है कि : पूर्व दिशा के लोक के चरिमान्त से प्रभात सूर्य कब कहाँ होता है ? तब दिन-रात्रि | में पूर्व आकाश में निकलता है। वह तिरछे लोक कितने मुहूत के होते है ? में विनाश को प्राप्त होता है। उदाहरणार्थ : (२) कितनेक ऐसा कहते हैं कि पूर्व दिशा “१२ वे मंडल में सूर्य चलता हो तब | के लोक के चरिमांत से प्रभात में सूर्य आकाश १५० मुहुर्त का दिन होता है और १४३ | में रहता है । वही सूर्य तीरछे लोक में प्रकाश मुहूर्त की रात्रि होती है।" | करके पश्चिम दिशा के लोकांत में संध्या समय इससे आगे भी सूर्य का परिभ्रमण प्रति- में आकाश में विचरे । (३) कितने ऐसा कहते पादित किया गया है और प्रत्येक मंडल के परि- हैं कि पूर्व दिशा के लोक के चरिमांत में प्रभात भ्रमण का विवरण दिया गया है। । में सूर्य आकाश में रहता है । वह तीरछे लोक में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003177
Book TitleTattvagyan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year1982
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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