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सूर्यप्रज्ञप्ति के अनुसार सूर्य गतिशील है। डॉ. तेजसिंह गौड
___(पी. एच. डी.) छोटाबजार-उन्हेल
(जि. उज्जैन ) म. प्र.
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सूर्यप्रज्ञप्ति जैनधर्म के महान् ग्रंथों में एक (१८) चन्द्रादिका उच्चत्वमान प्रमुख आगम-ग्रंथ है। जो कि गणितानुयोग के (१९) सूर्य-संख्या अन्तर्गत है।
(२०) चन्द्रादि का अनुभाव सूर्यप्रज्ञप्ति के मुख्य विषय का वीश प्राभृतो | इनमें से पहले प्राभूत के आठ, दूसरे में में विवेचन है । जो इस प्रकार हैं :- तीन और दसवे में बाईस उपप्रामृत याने प्राभृत(१) सूर्यमंडलों की संख्या
प्राभृत है। (२) सूर्य के प्रकाश्यक्षेत्र का परिमाण
विश्ववंद्य भगवान श्री महावीर स्वामी के (३) सूर्य का तिर्यक् परिभ्रमण
प्रधान शिष्य गणधर गौतम स्वामी तथा अन्य (४) सूर्य का प्रकाश संस्थान
गणधरादि भी अपनी-अपनी शंकाओं का समा(५) सूर्य का लेश्या प्रतिघात
धान भगवान महावीर के सम्मुख प्रस्तुत (६) सूर्य की ओजः संस्थिति
करते थे। (७) सूर्यलेश्या संस्पृष्ट पुद्गल
___ गणधर गौतम स्वामी ने सूर्य के विषय में (८) सूर्योदय संस्थिति
भी भगवान महावीर के सम्मुख कुछ प्रश्न प्रस्तुत (९) पौरुषी छाया प्रमाण
किये थे जिनका समाधान भगवान महावीरने (१०) योग स्वरूप
किया है। (११) संवत्सरों को आदि
यह सब विवरण आगमग्रंथ 'श्री सूर्यप्रज्ञप्ति' (१२) संवत्सर भेद
में मिलता है। (१३) चन्द्रमा की वृद्धि-अपवृद्धि
उसी विवरण को यहाँ संक्षेप रूप से उद्धृत (१४) ज्योत्स्ना प्रमाण
किया जा रहा है । यथा : (१५) चन्द्रादिकी शीघ्र गति निर्णय ____ गौतमस्वामी :-" जब सूर्य सबसे आभ्यंतर (१६) ज्योत्स्ना लक्षण
मंडल में से निकलकर सबके बाद के मंडल में (१७) चन्द्रादिका च्यवन और उपपात चाल चले तथा सबके बाद के मंडल से निकल
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