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________________ तत्त्वज्ञान स्मारिका . इन सारी बातों का सारांश यह भी हो साथ ही यह नमः सिद्धपन का साधक की सकता है कि यदि आप नाद-बिन्दु का और झुकाव प्रदर्शित करता है, अतः सिद्ध एवं समन्वित रूप देखना चाहते हैं तो आपको एक साधक के बीच पद सेतुरूप है । ही मंत्र पद ॐ नमः सिद्धम् में स्पष्ट रूप से | सिद्धम् पद साक्षात् कला रूप है। कला दिखाई देगा। का अर्थ है मूल यानी ॐ रूप सिद्धि-बीज का ॐ नाद का कलारूप नमः, बिन्दु का | नमन कर अपनी नमनीय--अवस्थारूपी जल का सेतु रूप एवं सिद्धम् उसका कला रूप है, सिंचन कर सिद्ध पद रूपी मूल को प्राप्त करो। क्योंकि ॐ तो प्रणव ध्वनि है, उसका मूल है। __ तो साधको को यदि किसी भी कार्य की प्रकर्षेण नवः अस्ति यः सः प्रणवः-अर्थात् जिस में प्रचुर नवीनता है, नित्य नया सर्जन करने सिद्धि प्राप्त करनी है तो उन्हें बिन्दु-नाद-कला मय ॐ नमः सिद्धम् की उपासना करनी चाहिए। की क्षमता है वह हुआ प्रणव । यह ॐ प्राण बीज एवं सिद्धि बीज हैं । | बालकों को भी विद्याभ्यास के प्रारम्भ में नमः बिन्दु है क्योंकि यह साधक की गुण- इस मंत्रात्मक त्रिपदी को इसीलिए पढ़ाते हैं कि ग्राहकता, विपन्नावस्था एवं कृपाकांक्षिता का | वे संसार में पहले वर्णमातृका एवं फिर यह संकेत करता है। | मातृका का ज्ञान प्राप्त करें। SHASHA म....न....न....क......!!! * परमात्मयशक्ति सोहजिक प्रतीति आराधकों को वीर्योल्लास बढनेवाली होती है। * अपनेमें समागत परमात्माका विशुद्ध स्वरूप छीपा हुआ है, यह विश्वास जब ज्ञानी गुरु के प्रताप से हो उठती है तब अपनी आराधना प्रबल हो जाती है । * विचारों में दीनता अपने अंतरंग-स्वरूप की जानकारी की सामीले से हो उठती है । " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003177
Book TitleTattvagyan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year1982
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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