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________________ बीजाक्षर एवं उनका महत्त्व स्वाहा - होम संज्ञा (त्याग सूचक) अक्षरों का प्रयोग करता है जिनमें अर्थ-प्रेषण इन सब बीजाक्षरों का · सिद्धम् ' के समा- की योग्यता है। पर अक्षर बिचारे क्या करेंगे ? ह्वानपूर्वक जाप होना चाहिए। यदि उनमें परस्पर सामीप्य नहीं होगा। वैसे __ इन बीजाक्षरों एवं उनके स्वरूप को सम- ही बीजाक्षरों से भी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए झने के बाद इनकी जपविधि को समझना | उनमें सामीप्य रहना चाहिए । हमारी आकांक्षा आवश्यक हैं। है सिद्धि की। जपकर्ता साधक को इन चार बातों का | हमने ॐ मूल बीजाक्षर को एवं एक प्राण पूरा ध्यान रखना चाहिए ।। | शक्ति के प्रतीक ही को लिया । फिर इस प्राण ___ (१) अक्षराक्षर संतानम् - मंत्र के अक्षरों शक्ति को इच्छानुसार फल प्राप्त करने के लिए को स्पष्टता से उच्चरित करना चाहिए, जिससे | क्लीं ब्ली आदि बीजाक्षरों के साथ जोड़ दिया प्रत्येक अक्षर मंत्र में मिला होते हुए भी अलग तो ये बीजाक्षर अब महासिद्धिदाता रसायण सत्ता का निरूपण करे। उच्चारण में शुद्धता | बन गये। का ध्यान रखना परमावश्यक है । __ यदि ये अलग अलग रूक रूक कर बोले (२) न द्रुतम् - मंत्रोच्चारण में शीघ्रता, जाते तो आन्तरिक स्फोट-ध्वनि को पैदा नहीं व्यग्रता, उद्विग्नता नहीं होनी चाहिए। इनसे | कर सकेंगे एवं हमें हमारा इष्ट साधन प्राप्त मंत्र का प्रभावक पौरुष लक्ष्य केन्द्रित नहीं नहीं होगा। होता है। बीजाक्षरों एवं मंत्र पद के उच्चारण से (३) न विलम्बितम् -- मंत्रोच्चारण में आव-सिद्धि प्राप्त करने के लिए निम्न बातों का ध्यान श्यकता से अधिक विलम्ब नहीं होना चाहिए। | रखना चाहिए: यदि मंत्रो के उच्चारण में एक अक्षर के | उत्साहान्निश्चयाद् धैर्यात् , संतोषात् तत्त्वदर्शनात् । बाद दूसरा अक्षर बोलने में विलम्ब कर दिया | मुनेर्जनपदत्यागात्, षडभियोगः प्रसिध्यति ॥ तो उन दो अक्षरों के मिलने से जो शक्ति-भाव अर्थात् मंत्र-जप से सिद्धि प्राप्त करने के पैदा होता है वह नहीं होगा एवं मंत्र सार्थक | लिए मनमें उत्साह, भावना में निश्चय, वृत्ति में नहीं बनकर निरर्थक बन जायगा । धैर्य, हृदय में संतोष, बुद्धि में जिज्ञासा एवं जनवाक्य के उच्चारण में भो वाक्य के शब्दों समूह से अलग होकर एकान्तप्रियता की भावना में आपस में आकांक्षा, योग्यता एवं सामीप्य की होनी चाहिए, तभी मंत्र-योग की सिद्धि हो आवश्यकता होती है। सकती है। __ आकांक्षा होती है साधक की अपने भावों ये बीजाक्षर एक प्रकार के प्रतीक हैं, जिनमें को दूसरों तक पहुँचाने की, अतः वह वैसे ही | ईश्वरीय-शक्ति की प्रगाढ़ प्राणवत्ता समाई हुई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003177
Book TitleTattvagyan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year1982
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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