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0 बीजाक्षर एवं उनका महत्त्व
लेखकः-प्रशांतयोगी
मंत्र शास्त्र में बीजाक्षरों का बड़ा महत्त्व हैं। केन्द्रित कर इच्छोपलब्धि के लिए तत्पर बनाने
जिस प्रकार ध्वनि-तरंगे इथर पर आकाश- हेतु तदनुकूल स्फोट (ध्वनि) पैदा करना होगा। मार्ग में निरंतर विचरण करती रहती हैं, एवं हम | इस स्फोट-ध्वनि के तांगाघात से भा. इच्छानुसार रेडियो के स्टेशनों पर सुई केन्द्रित | वलय चक्र उद्भूत होंगे। कर उन तरंगों को सुन सकते हैं। वैसे ही ये
इन भाव-वलयों के आवर्ती से विपरीत बीजाक्षर भी मंत्र की शक्ति को इच्छानुसार फल
भाव अथवा विघ्न उसी प्रकार दूर होते हैं, जिस प्रदान करने में सहायता देते हैं।
प्रकार शक्ति-संचालित नौका-प्रवाह की विपरीत शास्त्र में कहा है:-शब्द-ब्रह्म में निष्णात
| दिशा में आगे बढती रहती है । होने से पर-ब्रह्म की उपलब्धि होती है ।*
__इसका यह अर्थ नहीं कि-बिना बीजाक्षरों ब्रह्म-शक्ति शब्दातीत है, एवं यदि इस
के मंत्र फलदायी नहीं होता । " भावना फलतीह परा-शक्ति का साक्षात्कार करना है, तो हमें
सर्वत्र " के शास्त्रवचन के अनुसार भावना से सर्व प्रथम लौकिक मातृका का अध्ययन कर
जपा प्रभु का नाम स्मरण भी अतुल फल-प्रदान उसमें निष्णात होना पडेगा।।
करता है। प्रभु के नाम को ही मंत्र मानकर तत्पश्चात् हमें वर्ण मातृका के सार एवं
भी ऋषियों ने विश्व की समग्र सिद्धियों को उसके परा रूप ॐ अहं आदि आद्य बीजों का
प्राप्त किया है। आश्रय लेना ही पड़ेगा। ये ॐ अहं आदि समग्र मंत्रशक्ति के सार
परन्तु ये बीजाक्षर हमारे जप को सूक्ष्मी
| कृत कर ( Pin Pointed ) सामान्य साधक वर्ण मातृका का बाह्य रूप वैखरी रूप है, | को भी सत्वर फलोपलब्धि करवाने में सहायता जो समस्त संसार में व्याप्त हैं । इसे विश्वविग्रहात्मिका भी कहते हैं, क्योंकि सारा संसार इसमें | जिस प्रकार दूध स्वयं अमृतमय है, पर विजूम्भित हो रहा है उस विश्व के प्रपंचात्मक | उसमें इच्छानुसार अन्य वस्तुओंका मिश्रण कर विग्रह को अपने मानसिक भावानुसार अभि- | उसे नए नए स्वादिष्ट पक्वान्नों में परिवर्तित
* शाब्दे ब्रह्माणि निष्णातः परं ब्रह्माधिगच्छति ।
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