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तत्त्वज्ञान स्मारिका
[खंड किया जा सकता है। वैसे ये सब बीजाक्षर | यह 'हो' प्राण रसायण बना यानी ह प्राण केवल एक ॐ में पर्युषित हैं।
बीज, र अग्नि बीज अर्थात् चैतन्य शक्ति और बीजाक्षर क्या हैं ? ये हैं वाक्-बीज। इं गतिनाद । ये सब तत्त्व प्राण शक्ति के लिए वाक् क्या है ? सृष्टि का व्यक्त रूप । जैसे वट अत्यावश्यक हैं। अतः ये प्राण रसायण का काम वृक्ष । और ये बीजाक्षर क्या है ? वट वृक्ष के करते हैं और इनका सूक्ष्मीकृत सूत्ररूप संकेत बीज । जिस प्रकार वट के सूक्ष्म बीन में विशाल ही है। वट वृक्ष की प्राणवत्ता समाई रहती है वैसे ही ॐ बीजाक्षर में अ उ म्-तीन वर्ण हैं इन बीजों में सृष्टि-तंत्र के 'अणोरणीयान्' । जिनका अर्थ है-अ-अव्यक्त, अशेष; उ-उपलब्धि ' महतो महीयान् ' स्वरूप का परिस्पन्दन हो एवं म्-महत्ता । अर्थात् अशेष महत्ता की उपरहा है।
लब्धि यानी सिद्धि-दाता बीज या एकाक्षर मंत्र । इन बीजाक्षरों में नाद का प्रतीक आव- मंत्र में तीन बातें होती हैं :श्यक रूप से समाया हुआ रहता है ।
बीज, मंत्र एवं पल्लव, जैसे-ॐ नमः __ नाद का स्थान तो नाभिमंडल है, पर यह | सिद्धम् बिन्दुरूप कंठ के माध्यम से सहस्र-दल कमल
___बीज को ध्यानाकर्षण, मंत्र को विशेषण में भ्रमरवत् गुंजता रहता है । इसका वैखरी रूप
और पल्लव को द्रवण कह सकते हैं । अनुस्वार है जो पंचावयवात्मक है, और मंत्र भी
ये बीज इच्छित वस्तु की प्राप्ति के लिए पंचांग होता हैं एवं प्राण भी पांच ही होते हैं।
चैतन्य-शक्ति का ध्यानाकर्षण करते हैं। ये ङ् ञ् ण् न् म् ये पांच अनुस्वार हैं । इनमें स्व
ध्यानाकर्षण ही बीजाक्षर-रूप हैं जैसे ऐ। रात्मक अनुस्वार अं तो समाया हुआ ही हैं ।
विशेषण पद से अपनी दयनीयावस्था का प्रदर्शन यह पंचावयवात्मक अनुस्वार रूप नाद
और इष्ट की शक्ति की महत्ता बताते हैं। हमारी पंच भूतात्मक सृष्टि का नियमन, सन्तुलन
एवं द्रवण से कार्य सिद्धि के लिए कृपाएवं स्पन्दन करता है । इन सब का सार अथवा
कटाक्ष की आकांक्षा करते हैं। एकी भूत स्वरूप है “ अं" एवं त्रिकलात्मक द्रवण भी दो प्रकार से होता है-साधक रूप है -
तो विनयावनत होकर करुणाद्र हो जाता है ___अं इं उं जो गं (गं गं गणपतये नमः) मे | एवं इष्ट शक्ति करुणा से आप्लावित हो कर अं के रूप में है । इनका तुरीय रूप है विसर्ग | अनुग्रह के लिए अवतरित होती है। ठः ठः स्वाहा ।
__यही साधक व साध्य का साधारणीकरण विसर्ग का व्यक्त रूप है ह जो प्राण ध्वनि है अर्थात् इस उच्च सात्त्विक अवस्था में साधक है। इससे अग्नि बीज र एवं नाद इं मिलाने पर | तथा साध्य एक ही भूमि पर उतर आते हैं, एवं
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