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पृथ्वी संबंधी कुछ
नवीन तथ्य मुनी नथमलजी
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जैन-दृष्टि के अनुसार भू-वलय (भूगोल) वैज्ञानिकों ने ग्रह, उपग्रह और ताराओं का स्वरूप इस प्रकार है
के रूपमें असंख्य पृथ्वीयाँ मानी हैं। "तिरछे लोक में असंख्य द्वीप और असंख्य
वैज्ञानिक जगत् के अनुसार-"ज्येष्ठा तारा समुद्र है, उनमें मनुष्यों की आबादी सिर्फ ढाई
| इतना बड़ा है कि उसमें वर्तमान दुनियां जैसी द्वीप (जम्बू, घातकी और अर्द्ध पुष्कर) में ही |
सात नील पृथ्वीयाँ समा जाती है" है। इनके बीच में लवण और कालोदधि-ये दो
__ वर्तमान में उपलब्ध पृथ्वी के बारे में एक
वैज्ञानिक ने लिखा है-"और तारों के सामने सभुद्र भी आ जाते हैं, बाकी के द्वीप-समुद्रों में
यह-पृथ्वी एक धूल के कणसमान है" न तो मनुष्य पैदा होते है और न सूर्य-चन्द्र
विज्ञान निहारिका की लम्बाई-चौड़ाई का की गति होती है, इसलिए ये ढ़ाई द्वीप और दो जो वर्णन करता है, उसे पढ़कर कोई भी व्यक्ति समुद्र शेष द्वीप समुद्रों से विभक्त हो जाते है।
| आधुनिक या विज्ञानवादी होने के कारण इनको 'मनुष्य-क्षेत्र' या 'समय-क्षेत्र' कहा | ही प्राच्य-वर्णनों को कपोल-कल्पित नहीं जाता है। शेष इनसे व्यतिरिक्त है । उनमें सूर्य- मान सकता।" चन्द्र हैं सही, पर वे चलते नहीं, स्थिर हैं । जहां | नंगी आँखों से देखने से यह निहारिका सूर्य है वहां सूर्य और जहां चन्द्रमा है वहां शायद एक धुंधले बिन्दु मात्र-सी दिखलाई चन्द्रमा । इसलिए वहाँ समयका माप नहीं हैं ।
| पड़ेगी, किन्तु इसका आकार इतना बड़ा है कि, तिरछालोक असंख्य योजन का है, उसमें | हम बीस करोड़ मील व्यास वाले गोलों की मनुष्यलोक सिर्फ ४५ लाख योजन का है ।" । लम्बाई-चौड़ाई का अनुमान करें-फिर भी
पृथ्वी का इतना बड़ा रूप वर्तमान की | उक्त निहारिका की लम्बाई-चौड़ाई के सामने साधारण दुनिया को भले ही एक कल्पना-सा | उक्त अपरिमेय आकार भी तुच्छ होगा औरलगे ! किन्तु विज्ञान के विद्यार्थी के लिए कोई इस ब्रह्माण्ड में ऐसी हजारों निहारिकाएँ आश्चर्यजनक नहीं।
| है । इसमें भी बड़ी और इतनी दूरी पर है कि
१-हिन्दी विश्वभारती अंक १ लेख । पृ० ५ आकाश की बातें ।
२-हि० विश्व भा० अंक १ ।
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