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तत्त्वज्ञान-स्मारिका
१ लाख ८६ हजार मील प्रति सेकण्ड चलने | हैं । यह पृथ्वी एक ही है। किन्तु जल और बाले प्रकाश को वहां से पृथ्वी तक पहुँचने में | स्थल के विभिन्न आवेष्टनों के कारण यह १० से ३० लाख वर्ष तक लग सकते हैं। । असंख्य-भागों में बँटी हुई है।
वैदिक शास्त्रों में भी इसी प्रकार अनेक जैनसूत्रों में इसके बहदाकार और प्रायः द्वीप-समुद्र होने का उल्लेख मिलता है। अचल मर्यादा का स्वरूप लिखा गया है । पृथ्वी जम्बूद्वीप, भरत आदि नाम भी समान | के लध्वाकार और चल मर्यादा में परिवर्तन होते
रहते है । बृहदाकार और अचल मर्यादा के साथ - आज की दुनिया एक अन्तर-रखण्ड के लघ्वाकार और चल मर्यादा संगति नहीं होती, रूपमें है। इसका शेष दुनिया से सम्बन्ध जुड़ा
इसीलिए बहुतसारे लोग असमञ्जस में पड़े हुभा नहीं दीखता । फिर भी दुनिया को इतना ही मानने का कोई कारण नहीं।
प्रो० घासीराम जैन ने इस स्थिति का ___ आज तक हुई शोधों के इतिहास को जानने
उल्लेख करते हुए लिखा हैः-१ “विश्व की मूल वाला इस परिणाम तक कैसे पहुंच सकता है ? कि " दुनिया बस इतनी है ? और उसकी
आकृति तो कदाचित् अपरिवर्तनीय हो ! किन्तु अन्तिम शोध हो चुकी है।"
उसके भिन्न-भिन्न अङ्गो की आकृति में सर्वदा ___अलोक का आकाश अनन्त है । लोक का |
परिवर्तन हुआ करते हैं । आकाश सीमित हैं । अलोक की तुलना में लोक | उदाहरणतः भू-गर्भ-शास्त्रियों को हिमाचल एक छोटा-सा टुकड़ा है। अपनी सीमा में वह | पर्वत की चोटी पर वे पदार्थ उपलब्ध हुए हैं जो बहत बड़ा हैं। पृथ्वी ओर उसके आश्रित जीव । समुद्र की तली में रहते हैं। जैसे "सीप, शंख,
और अजीव आदि सारे द्रव्य इसके गर्भ में | मछलियों के अस्थिपञ्जर-प्रभृति" । समाए हुए हैं।
अतएव इससे यह सिद्ध हो चुका है कि पृथ्वीयां आठ है। सबसे छोटी पृथ्वी | अबसे ३ लाख वर्ष पूर्व हिमालय पर्वत समुद्र के "सिद्धशिला" है, वह उँचे लोकमें है। | गर्भ में था। (१) रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा,
| स्वर्गीय पण्डित गोपालदासजी वरैया पङ्कप्रभा. धूमप्रभा. तमःप्रभा. महातमःप्रभा-ये अपनी-"जैन जागरफी' नामक पुस्तक में सात बड़ी पृथ्वीयां है।
लिखते हैं: ... ये सातों नीचे लोक में हैं । पहली पृथ्वीका | "चतुर्थ काल के आदि में इस आर्य-खण्ड ऊपरी भाग तिरछे लोकमें है । हम उसी पर रहे। में उपसागर की उत्पत्ति होती है, जो क्रम से
१-हि० भा० अंक १ चित्र १ ।
२-यूनानी विद्वान युक्लीड रेखा गणित (दिशागणित) का प्रसिद्ध आचार्य हुआ है । युक्लीडीव-रेखा गणित का आधार यह है कि विश्वका ओर-छोर नहीं है, वह अनन्त से अनन्त तक फैला हुआ है ।
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