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तत्त्वज्ञान-स्मारिका . (१) मर्केटर प्रोजेक्शन-यह काफमेन नामक किनारे के भाग घने हो जाते हैं। ऊपर-नीचेके जर्मन द्वारा आविष्कृत प्रणाली है । इसमें उत्तरी- भागोंमें भी त्रुटि रहती है । भाग अपने वास्तविक आकारसे बहुत बड़े हो | (५) स्टिरिओग्राफिक प्रोजेक्शन-इसमें जाते हैं।
किनारेका क्षेत्रफल असली--क्षेत्रफलसे बहुत बढ़ (२) पोलवीड प्रणाली-यह प्रणाली मर्के- जाता है। टरसे बिलकुल ऊलट है। इसमें भिन्न भिन्न | इनके अतिरिक्त पोलीकोनिक सेन्सन प्लेभागोंका क्षेत्रफल तो दिखाई पड़ता है किन्तु में टीडके भी प्रोजेक्शन प्रसिद्ध हैं। किन्तु वे आकार बदल जाते हैं।
सब भी दोषपूर्ण है । किसीमें क्षेत्रफल, किसीमें (३) काँनिकल प्रोजेक्शन-इससे ध्रुवके | आकार, किसीमें स्थिति ही गलत हैं। निकटवर्ती उंचे आकाशोका ठीक नकशा नहीं बन
ऐसी दशामें पृथ्वी नारंगीके समान गोल पाता और ध्रुवको बिन्दु रूपमें नहीं दिखलाया है यह कहना कहां तक युक्तिसंगत है? जो कुछ जा सकता।
भी "श्री जे. मेकडोनलकी यह नई खोज ___ लोकप्रणालीमें भी यह दोष है कि ध्रुवके (जो जैनधर्मानुसार है)" शीघ्र ही वैज्ञानिक समीप पृथ्वीके भाग परस्पर निकट हो जाते हैं, जगतमें उथलपुथल पैदा करेगी। और भूमध्य रेखा पर बहुत दूर ।।
-'जीवन' से (४) आर्थोग्राफिक प्रोजेक्शन-इसमें नकशे -श्री जैन सत्यप्रकाश वर्ष २० अं० ४ से के बीचका भाग तो ठीक बनता है, किन्तु ।
साभार उद्धृत.
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