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पातंजल योगशास्त्र के अनुसार भुवनों का स्वरूप [१२१ अन्य लोक और उनके स्वरूप
__ ब्रह्मपुरोहित दो हजार, ब्रह्मकायिक चार ___ भू-लोक का परिचय हमने ऊपर दिखलाया | हजार, ब्रह्म महाकायिक आठ हजार तथा अमर है, इसके अतिरिक्त अन्य छह लोक और हैं | संज्ञक देव सोलह हजार कल्प की आयुवाले जिनके नाम-स्वरूपादि इस प्रकार हैं
| होते हैं। १-भुवर्लोक-भू-लोक के ऊपर यह लोक । ५-तपोलोक-जन-लोक से ऊपर तपोस्थित है । इसका दूसरा नाम 'अन्तरिक्ष है। लोक है, यहां अहंकार को वश में रखनेवाले १यहां ग्रह, नक्षत्र एवं तारागण ज्योतिश्चक्र में अभास्वर २-महाभास्वर तथा ३-सत्य महानिबद्ध होकर सञ्चरण करते हैं ।
भास्वर-ऐसे तीन प्रकार के देव रहते हैं।
ये जन-लोक के देवताओं की अपेक्षा द्विगुण२-स्वर्लोक-अन्तरिक्ष के ऊपर स्थित इस लोक को माहेन्द्रलोक भी कहते हैं।
द्विगुण आयुष्वाले हैं और ये सभी ऊर्ध्व रेतस्
होते हैं। यहां-त्रिदश, अग्निप्वात्त, याम्य, तुषित,
-सत्यलोक-सब लोकों से ऊपर सत्यभपरिनिर्मित, वशवर्ती तथा परिनिर्मित, वशवर्ती- लोक है। ऐसी छः देवजातियां हैं।
यह योगियों की निवासभूमि है। यहां के ये समस्त देव सिद्ध संकल्प तथा अणिमा
योगी चार प्रकार के हैं-१-अच्युत, २-शुद्धआदि आठ ऐश्वयों से सम्पन्न होते हैं। निवास, ३, सत्याभ तथा ४ - संज्ञा संज्ञी । ये
चारों प्रकार के योगी क्रमशः सवितर्क सविचार, ये शरीरधारण में स्वतन्त्र हैं और एक .
सानन्द और सास्मित समाधि सिद्ध हैं। कल्प पर्यन्त जीवित रहते हैं।
प्रणवोपासक इन योगियों की आयु सर्ग३-महर्लोक-'प्राजापत्य--लोक' इस का पर्यन्त होती है। दूसरा नाम है । यह स्वर्लोक के ऊपर है । यह
भूलोक के अधोवर्ती लोक कुमुद, ऋभु, प्रतर्दन, अजनाभ, और अमिताभ-संज्ञक पांच देवजातियों की निवासभूमि
१-अतल-लोक-भूलोक के नीचे यह लोक है। ये पंचमहाभूतों को वश में करनेवाले,
स्थित है। यहां मय-पुत्रादि असुर निवास
करते हैं। ध्यानप्रिय तथा कल्प-सहस्र आयुवाले होते हैं ।
२-वितल-लोक-यह पूर्ववर्ती लोक के ४-जनलोक-इसकी स्थिति महर्लोक के ऊपर है। यहां चार प्रकार के देवसमूह हैं-१- यहां भगवान् शिव पार्वती के साथ विहार ब्रह्मपुरोहित २-ब्रह्मकायिक, ३-ब्रह्ममहाकायिक करते हैं क्यों कि शिव हाटकी नदी के अधिपति और ४-अमर । ये भूतेन्द्रिय-वशी हैं। माने गये हैं । यह नदी यहीं प्रवाहित होती है।
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