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________________ १२. ] तत्त्वज्ञान-स्मारिका सात पर्वतों के नाम हैं-स्वरस, शतशृंग, और शुक्ला नामक नदियां इस द्वीप में बहती वामदेव, कुन्द, कुमुद, पुष्पवर्ष तथा सहस्रस्तुति । | है तथा यहां के निवासी वरुण की उपासना ... अनुमति, सिनीवाली, सरस्वति, कुरु, रजनी, | करते हैं । नन्दा तथा राका नामक सात नदियां प्रमुख | ५-शाकद्वीप-दधिसमुद्र से आवेष्टित यह हैं। यहां के निवासी सोमोपासक हैं। द्वीप क्रौंचद्वीप से द्विगुणित आयामवाला है। ३-कुशद्वीप--शाल्मलद्वीप से दुगुने आयाम- तथा इसके सात वर्षों के नाम हैं-पुरोजब, वाला यह द्वीप आठ लाख योजन विस्तृत है । मनोजव, पवमान, धूम्रानीक, चित्ररेक, बहुरूप और सोलह लाख योजन विस्तारवाले घृतसमुद्र तथा विश्वधारा । से भावेष्टित है। ईशान, ऊरु श्रृंग, बलभद्र, शतकेशर, सहस्र.. पूर्ववत् यहाँ-'वसु, वसुदान, दृढरुचि, स्रोत, देवपाल एवं महानस नामक सात पर्वतों नाभिगुप्त, सत्यकृत, विविक्त एवं नाभदेव' ऐसे | से यह विभूषित है। सात वर्ष हैं। ___ अनधा, आयुर्दा, उभयस्पृष्टि, अपराजिता, .. चक्र, चतुःशृंग, कपिल, चित्रकूट, देवानीक, पञ्चनदी, सहस्रस्तुति तथा निजधृति-ये सात ऊर्ध्वरोम और द्रविण नामक सात पर्वतों नदियां यहां प्रवाहित होती हैं और यहां के की यहां स्थिति है। प्राणी समाधि लगाकर प्राण की उपासना .. यहां की नदियों के नाम घृतकुल्या, रस करते हैं। कुल्या, मधुकुल्या, मित्रविन्दा, देवगर्भा, घृतच्युता ६-पुष्करद्वीप-स्वादूदक समुद्र से वलयाऔर मन्त्रमाला हैं और यहां के निवासी अग्नि कारित यह द्वीप शाकद्वीप से दुगुना बड़ा है । की उपासना करते हैं। यहां मानसोत्तर नामवाला केवल एक ४-क्रौञ्चद्वीप-कुशद्वीप से द्विगुण आयाम पर्वत है, जो कि एक अयुत योजन ऊंचा है। वाला यह द्वीप अपने से द्विगुणित क्षीरोदधि से इसके चारों और इन्द्र आदि लोकपालों के परिवेष्टित है। चार पुर हैं। यहां के सात वर्ष-आभ, मधुरुह, मेषपृष्ठ, स्वादूदक समुद्र के आगे की भूमि एक सुधामा, भ्राजिष्ठ, लोहितार्ण तथा वनस्पति नाम | ओर से एक करोड़ सत्तावन लाख पचास हजार से विख्यात हैं और शुक्र, वर्धमान, भोजन, उप- | आयामवाली है । बर्हण, नन्द, नन्दन एवं सर्वतोभद्र नाम से यह भूमि लोकभूमि कहलाती है। इससे प्रसिद्ध सात पर्वतों की यहां स्थिति है । अभया, आगे लोकालोक पर्वत है और उससे आगे अमृतौधा, अर्वका, तीर्थवती, रूपवती, पवित्रवती । कांचनमयी अलौकिक देवताओं की क्रीडाभूमि है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003177
Book TitleTattvagyan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year1982
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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