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पातंजल योगशास्त्र के अनुसार भुवनों का स्वरूप ये आत्माएँ विन्ध्यादि पर्वतों की चोटियों । अन्य द्वीप और उनकी विशेषताएँ पर चढ़कर भगवद्भक्ति में निमग्न रहती हैं। शास्त्रों में 'सप्तद्वीपा वसुन्धरा' कहा गया दूसरी ओर नारकीय दुरात्माएँ काम-क्रोधादि । है । तदनुसार प्रथम द्वीप जम्बूद्वीप है तथा शेष से अपनी आत्मा को मलिन करती हुई व्यभि- | अन्य पक्ष, शाल्मल, कुश, क्रौंच, शाक एवं चार-प्रिय होती हैं जो कभी मोक्ष प्राप्त नहीं पुष्करद्वीप बतलाये हैं। इनका परिचय योग करती हैं।
शास्त्रानुमोदित इस प्रकार हैंसुमेरु पर्वत की पूर्व दिशा में दो हजार | १-क्षद्वीप- जम्बूद्वीप से दुगुने परिमाण योजन विस्तृत माल्यवान् पर्वत है । इससे आगे | (दो लाख योजन) वाला यह द्वीप है । यह चार समुद्रपर्यन्त विस्तृत भद्राश्व वर्ष है, जो इकतीस लक्ष योजनवाले इक्षुरस-समुद्र से आवेष्टित है। हजार योजन विस्तृत है, यहां शक्ति और तेजः | इसमें-शिव, वयस् , सुभद्र, शान्त, क्षेम, सम्पन्न दस सहस्रजीवी मनुष्य निवास करते हैं। अमृत तथा अभय नामक सात वर्षों से युक्त है। सिद्ध--चारण इनकी शुश्रूषा करते हैं और ये तथा इन वर्षों में मणिकूट, वज्रकूट, इन्द्रलोग वनविहारप्रिय हैं।
सेन, ज्योतिष्मान् , सुपर्ण, हिरण्यष्ठीव तथा मेघसुमेरु के पश्चिग में दो सहस्रयोजन विस्तृत
माल नाम सात पर्वत है। गन्धमादन पर्वत हैं । इस पर अनेक सेवकों के । यहां अरुणा, तृष्णा, अंगिरसी, सावित्री, सहित कुबेर का निवास है जो अनेक सुन्दर सुप्रभाता, ऋतम्भरा तथा सत्यम्भरा नामक सात ललनाओं के साथ आमोद-प्रमोद मनाते । नदियां बहती हैं । इन नदियों का जल स्पर्शमात्र रहते हैं।
से मनुष्यों के पाप को दूर करता है । यहां के यहां इकतीस हजार योजन विस्तृत हेतु
निवासी सूर्योपासक हैं और वे एक सहस्र वर्षमाल देश है । यह भय एवं शोक रहित दश
जीवी होकर प्रजा आदि से परिपूर्ण होते हैं । सहस्रजीवी मनुष्यों की आवासभूमि है।
२-शाल्मलद्वीप-यह द्वीप प्लक्षद्वीप से सुमेरु के चारों ओर अठारह हजार योजन द्विगुणित विस्तारशाली है तथा अपने से दुगुने विस्तृत इलावृतवर्ष है।
आयामवाले सुरा समुद्र से आवेष्टित है। इस प्रकार जम्बूद्वीप में कुल नौ वर्ष एवं इसमें भी सात वर्ष, सात पर्वत और सात नौ पर्वत हैं।
| नदियां हैं। सम्पूर्ण जम्बूद्वीप पूर्व से पश्चिम की ओर जिनके नाम इस प्रकार हैं-सात वर्षअथवा उत्तर से दक्षिण की ओर एक लक्ष सुरोचन, सौमनस्य, रमणक, देव, पारिभद्र, आ. योजन विस्तृत है।
प्यायन तथा अविज्ञात ।
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