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तत्त्वज्ञान-स्मारिका कुश, क्रौंच, शाक तथा पुष्कर' नाम वाले हैं। । हजार वर्ष की है । माया और मति इनके आधीन प्रत्येक द्वीप एक-एक समुद्र से आवेष्टित है तथा | रहते हैं । ये अपनी स्त्रियों सहित विहार करते हैं । वे दोनों वलयाकार हैं।
रमणक वर्ष में मनुष्यों का आवास है । वलयाकार वाले इन द्वीपों में 'जम्बूद्वीप' पुण्यकर्मों के कारण यहां के निवासी दस हजार की स्थापना मध्य में है।
वर्ष पर्यन्त प्राण-धारण करते हुए सुख से रहते ' स्वयं एक लक्ष योजन विस्तृत और दो
हैं । यह मनुष्यों की भोगभूमि है। लक्ष योजन विस्तृत लवणसमुद्र से वेष्टित इस |
सुमेरु के दक्षिण भाग में निषध, हेमकूट जम्बूद्वीप के मध्य में मेरु-सुमेरु पर्वत है।
तथा हिमशैल' नामक तीन पर्वत हैं । यहां सर्प, सुमेरु पर्वत की ऊँचाई ८४ हजार योजन
नाग, गन्धर्व आदि दिव्य योनियां रहती हैं । है। यह शिरोभाग में ३२ हजार योजन तथा
__ हेमकूट पर्वत पर गुह्य जगत के लोग रहते मूल से १६ हजार योजन विस्तारवाला है।
हैं । ये पर्वत भी दो-दो सहस्रयोजन विस्तृत हैं । सुमेरु के चार शिखर हैं-पूर्व में रजतमय,
इन पर्वतों के मध्यभाग में एक-एक वर्ष दक्षिण में वैडूर्यमणिमय, पश्चिम में स्फटिक का एवं और उत्तर में हेममणिमय हैं।
है जिनके नाम क्रमशः हरिवर्ष, किंपुरुष और सुमेरु की उत्तर दिशा में तीन पर्वत हैं |
* भारतवर्ष है । प्रत्येक वर्ष का विस्तार नौ-नौ नील, श्वेत तथा शृंगवान् । इन तीनों का
हजार योजन है । विस्तार दो-दो सहस्र योजन है । वैदुर्यमणि हरिवर्ष में ब्रह्माण्ड के अनुयायी दैत्य, को कान्तिवाले नीलपर्वत पर ब्रह्मर्षि, रजताभामय | दानव, नृसिंहादि निवास करते हैं । श्वेतपर्वत पर देवासुर तथा हेमरत्नादिमय शृंग किंपुरुष वर्ष में किंपुरुष, गन्धर्व आदि के वान् पर्वत पर सपत्नीक देवगण रहते हैं। साथ हनुमान् प्रभृति रहते हैं । ये अष्टादश ... इन तीनों पर्वतों के मध्य एक-एक वर्ष पुराण, इतिहास आदि के द्वारा श्रीराम का है जो क्रमशः रमणक, हिरण्यक तथा उत्तरकुरु | गुणगान करते हैं। नाम से विख्यात हैं । प्रत्येक वर्ष नौ-नौ हजार भारतवर्ष में निवास करनेवाले मनुष्य अपने योजन विस्तार वाला है।
शुभाशुभ कर्मानुसार स्वर्ग, नरक अथवा मोक्ष के उसरकुरु में ऐसे दिव्य वृक्ष हैं जो समस्त अधिकारी होते हैं । अन्य खण्डों की भांति यह कामनाओं को पूर्ण करते हैं । हेम तथा सुवर्ण | केवल भोग भूमि नहीं है, अपि तु कर्मभूमि भी है। कण की भूमिवाले इस वर्ष में तेरह हजार वर्ष | यहां बहने बाली गंगा आदि नदियों में की आयुवाले देवगण निवास करते हैं। स्नान करके पुण्यात्माएँ पापकालुष्य को दूर
हिरण्य वर्ष के देवताओं की आयु :ग्यारह | करती हुई अपने को कृतकृत्य मानती हैं ।
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