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गुजरात का सारस्वत नगर पाटन और हिन्दी इनमें काव्य-रस का समुचित परिपाक है- मित्रोंने हिन्दीमें अपनी रचनाएँ लिखने का प्रयास काव्य-रस और अध्यात्म-रस का अपूर्व समन्वय किया है। देखने को मिलता है । इस कविता की मूल !
___अन्वेषण, सम्पादन, निबंध लेखन तथा प्रकृति शांत रस की रही है।
| अन्यान्य रचना-प्रकारों की दृष्टि से आज की इस प्रकार गुजराती कवियों का हिन्दी में
पीढ़ी के पट्टनियों का भी हिन्दी-प्रेम किसी हद साहित्य रचना के प्रति परम्परागत मोह रहा है।
कम नहीं। प्रान्तीयता को लेकर भाषा के झगडे इनमें कभी नहीं उठे, उठे भी तो लोकभाषा को लेकर ही ।। __ ऐसे आज के पाटन के हिन्दी-सेवी
हिन्दी में लोकभाषा और लोकजीवन के विद्वानों में गो. पा. द्वारकादास परीख, डो. सभी गुण विद्यमान थे । अतः इन कवियों ने इसे | भोगीलाल सांडेसरा, डॉ. हरगोविन्दभाई सी. सहर्ष अपनाया ।
नायक, प्रो. कानजीभाई एम. पटेल, विष्णु कलाल इनकी हिन्दी भाषामें शिक्षा और प्रान्तीय | 'बादल', पूनमभाई ए. स्वामी आदि के नाम प्रभावों के कारण थोडा अन्तर अवश्य आया,
गिनाये जा सकते हैं। किन्तु भाषा के एक सामान्य रूप अथवा उसकी इस प्रकार गुजरात और विशेषतः पाटनके एकरूपता में कोई विकृति न आने पाई । गाँधी
साहित्यकारोंने भी १५वीं शती से आज तक जीने हिन्दी के जिस रूप की कल्पना की थी, प्राचीन हिन्दी-राजस्थानी, ब्रजभाषा, खडीबोली इन कवियों की रचनाओं में वह उपलब्ध है। आदि भाषाओं में अनेक गौरव-ग्रंथोंकी रचना
आज तो हिन्दी का राष्ट्रभाषा की दृष्टि की है। से ज्ञान सुलभ बना है, अतः उसके प्रति आदर
इससे स्पष्ट है कि हिन्दी, इन अहिन्दीस्वाभाविक है ।
भाषी साहित्यकारों पर बलात् थोपी या लादी आजकी पीढी के अनेक गुजराती कवि नहीं गई थी, उन्होंने उसे स्वयं ही श्रद्धा और दूलाभाई काग, सुन्दरम् . राजेन्द्र शाह और प्रेम से अपनाया था और अपनी अभिव्यक्तिका गद्य लेखक इन्द्र वसावडा तथा असंख्य अध्यापक माध्यम बनाया था ।
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