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________________ देवलोक की सृष्टि (विज्ञान द्वारा प्रमाणित ) [ लेखक जवाहरचन्द्र पटनी एम. ए. (हिन्दी एवं अंग्रेजी) __ उपप्राचार्य श्री पार्श्वनाथ उम्मेद कॉलेज, फालना] कककककककककककककककककककक 340 दादर- क द -कान- नाकककककककककककर मेरु पर्वत पर इन्द्र-इन्द्राणी सहित देवकुल | आसपास जिस तरह हमारी पृथ्वी और इतर द्वारा भगवान महावीर का जन्मोत्सव मनाने का | ग्रह, चक्कर काटते हैं, वैसे इन इतर तारों के प्रसंग एक ओर भक्तिवर्धक है तो दूसरी ओर | सूर्यो के आसपास भी चक्कर काटते ग्रह एवं विज्ञान सम्मत भी है। उपग्रह होंगे । तारक विश्व में हमारे इस सूर्य ___क्योंकि आधुनिक-विज्ञान ने अपनी खोज की भाँति करोडों सूर्य होते हैं । करोड़ों सूर्य से यह सिद्ध कर दिया है कि "इस विराद जिनमें आये हों- ऐसे तारक विश्व भी सिर्फ ब्रह्मांड में असंख्य लोक हैं।" एक दो ही नहीं हैं --. ऐसे तो करोंड़ों तारक विश्व आकाश में बिखरे हुए हैं"-ऐसा आधुनिक ___आधुनिक खगोल-विज्ञान के अनुसंधान ने अनेक ग्रहों तथा उपग्रहों का पता लगाया है खगोल विज्ञान कहता है । जिससे सहज ही विश्वास हो जाता है कि उनमें , शास्त्रों ने विशाल देवविमान, देवलोक और से कतिपय--( जिनकी संख्या करोडों में हैं )- द्वीपों के जिन, अति विशालकाय क्षेत्र विस्तारों ग्रहों एवं उपग्रहों पर जीव सृष्टि है। का निर्देश किया है, उनको कुछ लोग चाहें ___ वैज्ञानिकों ने रेडियो, टेलिस्कोप और भ्रांतिवश कपोल-कल्पित क्यों न मानें, परन्तु स्पेक्ट्रोस्कोप से विश्व के अन्तरिक्षों का अवलो आधुनिक खगोल- विज्ञान ने अनेक तारक लोको कन किया है, वे विराट् ब्रह्मांड को स्वीकार के विस्तृत क्षेत्रों के जो माप लिये हैं, वे विश्वसकरते हैं। नीय हैं, क्योंकि उनका निश्चय भूमिति, त्रिकोणविराट् विश्व में देवलोक आदि भी हैं मिति, रेडियेशन आदि द्वारा मान्य सिद्धान्त के | आधार पर किया गया है। इसमें अब कोई सन्देह नहीं रहा है। ___ आइये ! ब्रह्मांड की विराटता के दर्शन आधुनिक खगोल-विज्ञान के अनुसार हमारी वैज्ञानिकों के शब्दों में करें-" रात्रि के समय सूर्यमाला में आये गुरुग्रह का व्यास ८०,००० हम जिस स्वर्गगंगा को देखते हैं। उसमें सूर्य मील है। हमारी पृथ्वी जैसे १३०० ग्रह इस जसे अरबों-तारें सूर्य हैं और हमारे सूर्य के | एक ग्रह में समा जाय, यह उतना बड़ा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003177
Book TitleTattvagyan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year1982
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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