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तत्त्वज्ञान-स्मारिका ने दी है। यहाँ उनकी प्रमुख कृतियों का को छोडकर भगवान के चरणकमलों में समसामान्य परिचय देना संगत होगा। पित होने का उपदेश दिया है ।
"नन्द बहोत्तरी--विरोचन मेहता वार्ता" "दोहा मातृका बावनी' में जीवनोपयोगी रचना में राजा नन्द तथा मंत्री विरोचन को सद्धर्म की अभिव्यक्ति हुई हैरसप्रद कथा दी गई है।
मन ते ममता दूरि कर, समता धर चित्त मांहि । राजस्थानी हिन्दी में लिखित यह ७२ । रमता राम पिछाण कै, शिवपुर लहै क्यु नाहिं । दोहों की रचना है
कवि जिनहर्षने नेमिनाथ और राजीमती की सूरवीर आरण अटल, अरियण कंद निकंद
प्रसिद्ध कथा को लेकर दो बारहमासों की राजत हैं राजा तहां, नन्दराई आनन्द । रचना की है।
'जसराज बावनी' कवि की दूसरी महत्त्व- इन बारह मासों में प्रेम और विरह का पूर्ण रचना है।
बड़ा मार्मिक चित्रण हुआ है। इस कृति में निर्गुणी संतों की भाँति इनकी अन्य प्रमुख रचनाओ में 'सिद्धचक्र "क्षौरशुं सीस मुडावत हैं केई, लम्ब जटा सिर । स्तवन', 'पार्श्वनाथ नीसाणी', 'ऋषिदत्ता चौपई' केइ रहावै ।" कह कर कवि बाह्याडम्बर का तथा ‘मंगल गीत' महत्त्वपूर्ण हैं । विरोध करता है और अन्त में "ग्यान बिना शिव जिनहर्ष की भाषा प्रसाद-गुणसम्पन्न, पंथ न पावे" कह कर ज्ञान की प्रतिष्ठा करता है।
परिमार्जित एवं सुललित है । माधुर्य और रसासंगीतात्मक गेय पदों में रचित कवि की त्मकता इनकी भाषा के विशेष गुण हैं। तीसरी प्रसिद्ध रचना है-'चौवीसी' ।
__ कवि द्वारा प्रयुक्त ब्रजभाषा तो और भी तीर्थंकरों की स्तुतियों के माध्यम से यहां मधुर और सजीव है । साहित्यिकता कहीं स्खलित कवि के भक्त-हृदय के सहज ही दर्शन हो नहीं होने पाई है । जाते हैं
'रास' संज्ञक काव्यों के साथ कवि ने साहिब मोरा हो अब तो माहिर करो | अनेक काव्यात्मक शैलियों का प्रयोग भी
आरति मेरी दृरि करो। किया है । खाना जाद गुलाम जाणि के,
यद्यपि धर्म, आध्यात्मिकता तथा नैतिकता मुझ ऊपरि हित प्रीति धरौ ॥ इन कवियों की मूल प्रेरणा रही हैं, तथापि ___'उपदेश छत्तीसी' रचना में अन्य भक्त- इनकी रचनाओं में न तो धार्मिक संकीर्णता है, कवियों की भाँति संसार की माया-मोह आदि न उनमें नीरसता, और शुष्कता ही।
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