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________________ १०६ ] तत्त्वज्ञान-स्मारिका भालण ने भागवत के दशम स्कंध का का जन्म भी पाटण के पास कनौडा गाँव में हुआ भावानुवाद कडवाबद्ध आख्यान के रूप में था, तथा पाटन में अधिकांश समय रहने एवं किया है। साहित्यरचना करने के प्रमाण मिलते हैं । भालण गुजराती आख्यान का पिता माना । प्राप्त-रचनाओं के आधार पर इनका गया है। भालण ने कृष्णसंबंधी स्वतंत्र पदों की साहित्य -सृजन-काल वि. सं. १७१९ से रचना की है। १७४३ तक माना जा सकता है। इनमें कुछ पद ब्रजभाषा के भी मिलते हैं । इन्होंने कुल मिलाकर ३०० ग्रंथों की रचना इसी समय (ई. सन् १५१२ ) के एक | की है, जिनमें ५-६ रचनाएँ तथा कुछ फुट कर जैन कवि लावण्यसमय ने ऐतिहासिक प्रबंध। पद हिन्दी भाषामें भी रचे हैं । काव्य ‘विमल प्रबंध ' की रचना की, जिसमें ___ उपाध्यायजी की रचनाएँ सरल भाषा में मुस्लिम पात्रों के द्वारा कहे गये वाक्यों में 'खडीबोली' का स्वरूप देखने को मिलता है । सम्भवतः रसपूर्ण ढंग से लिखी होने पर सामग्री की दृष्टि से अत्यन्त गरिष्ठ हैं। यह पाटन का पहला कवि है, जिसने खडीबोली का प्रयोग किया है 'आनन्दघन अष्टपदो' आनंदघनजी की हमकुं देवइ दोट वकाला, स्तुति में लिखी गई रचना है । 'सुमति' सखी के मागई माल कोडि बिच्यारा । साथ मस्ती में झूमते हुए, आत्मानुभवजन्य परम आनन्दमय अद्वैत दशा को प्राप्त अलौकिक तेज हमके हाजारि नहीं असवारा, से दीपित योगीश्वर रूप आनंदघन को देखकर नहीं कोई वली झूझारा ॥७९॥ यशोविजयजी के मन में जो भावोद्रेक हुआ उसे हमें सूरतान समान समाने, उन्होंने इस प्रकार प्रकट कियाहमकुं नामुं कोटि । देखे बीबी लोक लूटाउं, मारग चलत- चलत गात, आनंदघन प्यारे, मारि कराउं लोट ॥८०॥ रहत आनन्द भरपुर । इन पंक्तियों में कई भाषाओं के मिश्रण से | ताको सरुप भूप त्रिहुं लोक थे न्यारो, भाषा का रूप विकृत सा लगता है, फिर भी बरखत मुखका पर नूर ॥ 'खडीबोली' का स्वरूप सहज ही पकडा जा सुमति सखि के संग नित-नित दोरत, सकता है। कबहुं न होत ही दूर । द्वितीय हेमचन्द्राचार्य का बिरुद धारण जशविजय कहे सुनो आनन्दघन, करनेवाले, न्यायविशारद उपाध्याय यशोविजयजी | हम तुम मिले हजूर ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003177
Book TitleTattvagyan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year1982
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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