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गुजरात का सारस्वत नगर पाटन और हिन्दी
[१०५ __वनराज, सिद्धराज, कुमारपाल तथा कलि- । व्यापी संत परंपरा, ज्ञानगरिमा एवं व्यावहारिकाल सर्वज्ञ हेमचंद्राचार्य की प्रतिभा और व्य- कता का परिचय दिया है। क्तित्व की झाँकी करानेवाले अनेक स्थल आज पाटण के ऐसे यशस्वी कवियों में सर्व भी हैं, जिनसे उस समय के इतिहास पर अच्छा प्रथम १५ वीं शती के भट्टारक, सकलकीर्ति प्रकाश पडता है।
और ब्रह्म जिनदास आते हैं। कुशल राजनीतिज्ञ और विद्वान श्री के. ये संस्कृत के प्रकाण्ड पंडित थे, फिर भी एम. पाणिकरजी ने हेमचंद्राचार्य के संबंध में | इन्होंने लोकभाषा के माध्यम से राजस्थान और जो कहा है, वह योग्य ही है
गुजरात में जैन साहित्य और संस्कृति के निर्माण “ I Consider Hemchandracharya to में अपूर्व ये ग दिया । be the greatest of Gujaratis"
ब्रह्म ज़िनदास ने तो ६० से भी अधिक कच्छ-भूज की ब्रजभाषा पाठशाला के | रचनाएँ लिखकर हिन्दी साहित्य की श्रीआचार्य कनककुशल भट्टार्क, कुंवरकुशल भट्टार्क | वृद्धि की । आदि के ब्रज एवं राजस्थानी भाषा की कवि | इन रचनाओं में 'रामसीता रास' 'श्रीपाल ताओं एवं पिंगल-ग्रंथों का एक संग्रह भी यहाँ रास', 'यशोधर रास', भविष्यदत्त रास', 'परमके श्री हेमचंद्राचार्य जैन ज्ञान भण्डार में सुरक्षित हंस रास', 'हरिवंश पुराण', 'आदिनाथ पुराण' है, जो विशेष महत्त्व का है।
आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। कच्छ के महाराव श्री लखपतसिंह के समय इनके 'परमहंस रास' से एक उदाहरण में ब्रजभाषा में कविता करने की शिक्षा देने- | दृष्टव्य हैवाली एक पाठशाला चलती थी, जिसमें भारत | " पाषाण मांहि सोनो जिम होई, के कोने कोने से ब्रजभाषा कविता की शिक्षा
गोरस मांहि जिम घृत होई । पाने के लिए अनेक विद्यार्थी तथा जिज्ञासु विद्वान | तिल सारे तैल बसे जिम भंग, आते रहते थे।
तिम शरीर आत्मा अभंग ॥" गुजरात के प्रसिद्ध कवि दलपतराम भी भालण और विश्वनाथ जानी पाटण के ही इस पाठशाला के विद्यार्थी रह चुके हैं । पाटन | कवि थे। के इस प्राचीन साहित्य के अध्ययन से अनेका
___इनका समय ई. सन १५०० के करीब नेक तथ्य बाहर आ रहे हैं।
रहा है। गुजराती कवियों ने भी ब्रजभाषा में अथवा पाटण के घीवटा विस्तार में कवि भालण राजस्थानी हिन्दी में समर्थ रचनाएँ कर भारत- । के नाम से 'भालणनी खडकी' आई हुई ।
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