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________________ प्रावान भारत की जैन शिक्षा प्रणाली १०१ विज्ञान (चक्कवूह), गरुडव्यूह (गरुड) तथा अतिरिक्त व्याकरण (सद), तर्क (हेतुसत्थ), शकट व्यूह (सगड) सम्मिलित था ।' न्याय, कामशास्त्र तथा इन्द्रजाल-विद्या का विद्या के केन्द्र : अध्ययन भी होता था । राजधानियाँ, तीर्थस्थान, आश्रम तथा ____ प्रत्येक साधुओं के संघ चलते फिरते मन्दिर शिक्षा के केन्द्र थे । राजा तथा जमींदार विद्यालय थे। सत्य तथा ज्ञान के परीक्षण के लोग विद्या के पोषक तथा संरक्षक थे । समृद्ध लिए प्रायः वाद विवाद हुआ करते थे । वादराज्यों की अनेक राजधानियाँ जो कि विद्वानों विवाद करने के लिए बड़े-बड़े संघ (वाद पुरिसा) को आकृष्ट करती हुई अंत में बड़े-बड़े विद्या के हुआ करते थे, जहां जैन तथा अन्य साधु, केन्द्रों के रूप में परिणत हुई जैनागमों में खासकर बौद्ध साधु आकर सूक्ष्म से सूक्ष्म विषयों पर वाद-विवाद करते थे । यदि कोई वर्णित हैं। व्यक्ति तर्क तथा न्याय में कमजोर पाया जाता बनारस विद्या का मुख्य केन्द्र था । संख था तो उसको किसी अन्य जगह जाकर और पुर का राजकुमार अगडदत्त वहां पर विद्याध्ययन अधिक अध्ययन के लिए प्रयत्न करना पड़ता के लिए गया था । वह अपने आचार्य के आश्रम था । वहाँ से अध्ययन समाप्त कर वह लौटता में रहा और अपना अध्ययन समाप्त कर | और अपने विरोधी को पराजित कर धर्म का घर लौटा । प्रचार करता था। सावत्थी (श्रावस्ती) विद्या का केन्द्र था।' उत्तराध्ययन टीका (३, ७२) में एक पाटलिपुत्र भी विद्या का केन्द्र था । रक्खिय | ऐसे हठी साधु का वर्णन है जो कि अपने पेट (रक्षित) जब अपने नगर दशपुर में अपना में लोहे के एक तख्ते को बांधकर तथा एक अध्ययन नहीं कर सका तो वह उच्च शिक्षा के | जामुन (जम्बु) की शाखा को लेकर घूमा करता लिए पाटलिपुत्र गया। था और कहा करता था कि मैं उस लोह-पट्टको प्रतिष्ठान (पइद्वाण), दक्षिण में विद्या का अपने पेट से इसलिए बांधता हूँ कि कहीं ज्ञान केन्द्र था। की अधिकता से मेरा पेट न फट जाय और यह साधुओं के निवास स्थान (वसति) तथा जम्बूवृक्ष की शाखा इस बात की द्योतक है कि उपाश्रयों में भी विद्याध्ययन हुआ करता था। कि समस्त जम्बूद्वीप में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं ऐसे स्थानों पर वे ही साधु अध्यापन कर जो कि वादविवाद में उसका सामना कर सके । सकते थे जिन्होंने उपाध्याय (उवज्झाय) के समीप इस प्रकार आगम साहित्य में निरूपित रहकर प्राचीन शास्त्रों के अध्यापन की शिक्षा | जैन शिक्षाप्रणाली प्राचीन काल को एक सुव्यप्राप्त की हो । १२ अंगशास्त्रों के अध्ययन के । वस्थित शिक्षा प्रणाली के रूप में प्रतिष्ठित थी। १-लाइफ इन एंशियेन्ट इन्डिया एज डेपीक्टेड इन दि जैन कोनन्स-१, पृष्ठ-१७२ । २-उत्तराध्ययन टीका-४-पृ० ८३ ।। ३- - वही - ८, पृ० १२४ । ४- - वही - २, पृ० २२ अ। ५-बृहत्कल्प टीका-४, पृ० ९० अ। ६- - वही भाष्य-४, ५१७९ । ७- - वही -, ४, ५४२५, ५४२१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003177
Book TitleTattvagyan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year1982
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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