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तत्त्वज्ञान-स्मारिका १-पढ़ना तथा लिखना :
स्त्रियों के शरीर को सुन्दर बनाने की विधि), - लेह (लेख), गणिय (गणित)। पत्तच्छेत्ता (पत्रों से सुन्दर आभूषण बनाना) २-कविता बनाना :
तथा कडच्छेत्ता (भाल का सजाना ) पोरकल्व ( कविता बनाना ), अज्जा । ८-चिह्न विज्ञान (लक्षण) :(आर्या ), पहेलिया (प्रहेलिका) मागधिया | इसमें चिह्नों के द्वारा स्त्री, पुरुष, घोडा, (मागधी भाषा में कविता करना), गाथा ( गाथा हाथी, गाय, मुर्गा, दासी, तलवार, रत्न तथा छन्द में कविता का निर्माण, गोइय (गीतों का | छत्र के भेद को जानना सम्मिलित था। निर्माण ), सिलोय (श्लोकों का निर्माण )। ९-शकुन विज्ञान :३-मूर्ति निर्माण कला :
इसमें पक्षियों की बोली का ज्ञान आवरूव ( रूप)
श्यक था। ४-संगीत-विज्ञान :
१०-खगोल विद्या :, नष्ठ (नृत्य) गीय ( संगीत ) वाइय (वाद्य), ग्रहों के चलन (चार) तथा प्रतिचालन सरगम ( सरगम ) पुक्खरगय (ढोल-वादन), (पडिचार) का ज्ञान सम्मिलित था । ताल का ज्ञान ।
११-रसायन शास्त्र :मृत्तिका-विज्ञान :
इसमें सोना (सुवण्ण-पाग) चांदी (हिरण्ण दगमट्ठिय ।
पाग) को बनाना तथा नकली धातुओं को ६-द्यूतक्रीड़ा तथा गृहक्रीड़ा :
असली हालत में परिवर्तित करना (सजीव) तथा इसमें जुआ (धूत ), जणवाय (अन्य | असली धातु को नकली बनाना (निज्जीव) भी प्रकार का जुआ ), पासय (पासों से खेलना ) | सम्मिलित था । अट्ठाक्य ( शतरंज ), सुत्तखेड ( कठपुतलियों का | १२-गृह-विज्ञान :नाच ), वत्थ ( भोरे का खेल ) तथा नालिका- इसमें मकान बनाना (वत्थु विज्जा) नगरों खेड़ (अन्य-प्रकार के पासे का खेल) तथा जमीन को नापना (नगरारमण, खन्धार७-स्वास्थ्य, श्रृंगार तथा भोजन विज्ञान :- | मण) सम्मिलित थे।
. इसमें अन्नविहि (भोजन विज्ञान ), पाण | १३-युद्ध-विज्ञान :(पान), वत्थ (वस्त्र ), विलेपन (श्रृंगार ), सयण | इसमें युद्ध (जुद्र), कुश्ती (निजुद्ध), घोर ( शय्या विज्ञान ) हिरण्ण जुत्ति (चांदी के | युद्ध (जुद्धातिजुद्र), दृष्टियुद्ध (दिद्विजुद्ध), मुष्टिआभूषणों का परिधान), सुवण्ण ( सोने के | युद्ध (मुट्ठिजुद्ध), बाहुयुद्ध (बाहुजुद्ध), मल्लयुद्ध आभूषणों का परिधान ) आभरण विहि (अन्य (लय), तीर-विज्ञान (इसत्थ), असिविज्ञान (चरूप्रकार के आभूषणों को पहिनना ) चुण्ण जुत्ति | पवाय), धनुष-विज्ञान (धणुव्वेय), व्यूह-विज्ञान ( शृंगार चूर्ण बनाना ), तरुणी पडिकम्म (तरुण । (वूह), प्रतिव्यूह-विज्ञान (पडिवूह), चक्रव्यूह
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