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________________ आगम धर्म तथा दर्शन का अध्यापन होता था । उसकी विधि के वाचना ( पढना ), पृच्छना ( गुरु से पूछना ), अनुप्रेक्षा (चिंतन) आम्नाय (मनन) और धर्मोपदेश ये पांच अंग थे। लौकिक अध्ययन में सबसे प्रथम वेद का अध्ययन किया जाता था । स्थानांग ( ३, ३, वेदों के नाम हैं । १ - ऋग्वेद, २-यजुर्वेद, ३सामवेद | | १२५ ) में ३ प्राचीन भारत की जैन शिक्षा प्रणालि निम्न प्रकार अध्ययन क्रम था । छह वेद :-१-ग्वेद, २ - यजुर्वेद, ३ - सामवेद, - अथर्व वेद, ५ - इतिहास (पुराण), ६- निघण्टु, ४ छह वेदांग - १ - संखाण (गणित), २ - सिक्खा (स्वरशास्त्र), ३ - कप्प (धर्मशास्त्र), ४ - वागरण (व्याकरण) ५ - छन्द, ६ - निरूक्त (शब्दशास्त्र) तथा जोइस (ज्योतिष) छह उपांग- उनमें प्रायः वेदांगों में वर्णित विषयों का और भी अधिक विस्तार मात्र था ।' उत्तराध्ययन (३ पृ० ५६ - अ) में निम्न १४ प्रकार के पठनीय (विज्जद्वाण) विषयों का वर्णन है । ४ वेद, ६ वेदाँग, मीमांसा, नाय, पुराण तथाधम्म सत्थ । अनुयोगदार (सू०४०) तथा नन्दी (स्०४२ पृ० १६३) में लौकिक - श्रुत निम्न प्रकार माने गए हैं - भारह, रामायण, मीमासुरुवक, कोडिल्लय, घोडमुह, सगडिभड्डिआऊ, कप्पासिअ, नाग r सुहुम, कणगत्तरि, वेसिय, वेसेसिय, बुद्धसासण, कविल लगायत सहितन्त, माढर, पुराण, वागरण, नाङग, ७२ कलाएं, ४ वेद - अंग तथा उपांग सहित तेरासिय, भागव, पातज्ञ्जलि, पुस्सदेव | Jain Education International स्थानांग (६-६७२) में पापश्रुतों का वर्णन है १ - उपाय: - ( अपशकुन विज्ञान जो कि रक्त-वर्षा अथवा देश पर आनेवाली आपत्ति की सूचना दे) २ - निमित्त - (शकुन विज्ञान) ३- मन्त्र - (जादू टोना आदिक का विज्ञान) इन्द्रजाल विद्या । ४ - आइक्खिय- (निम्न - प्रकार की इन्द्रजाल विद्या) ५ - तेगिच्छिय - ( चिकित्सा विज्ञान ) ६-७२ कला ७ - गृहविज्ञान - (आवरण) ८- मिच्छापत्रयण - (मिथ्यात्व प्रवचन ) - ७२ कलाएँ : जैन आगमों में ७२ कलाओं का अनेक जगह वर्णन है । सभी छात्र इन सम्पूर्ण कलाओं को प्राप्त नहीं करते थे, किन्तु इन कलाओं का प्राप्त करना उद्देश्य आवश्यक रहता था । बहुत ही कम छात्र इन सम्पूर्ण कलाओं में निपुणता प्राप्त कर पाते थे । इन ७२ कलाओं का निम्न प्रकार वर्गीकरण किया गया है : १ - भागवती (२, १ ) तथा औपपातिक दशा सूत्र (३८ पृ० १७२) २ - णाया धम्माकहाओ - १, पृ० २१ समवायांग, पृ० ७७ अ, ओवाइय सुत्त - ४०, For Private & Personal Use Only रायणिय सुत्त - २९१) www.jainelibrary.org
SR No.003177
Book TitleTattvagyan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year1982
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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