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________________ भावना वर्गीकरण यह एक ज्ञातव्य तथ्य है कि आगमों में पांच महाव्रतों की पच्चीस भावनाओं का जहाँ चार प्रकार की भावनाओं का वर्णन | काफी विस्तृत वर्णन भी मिलता है । मिलता हैं, वहाँ भेदों की समानता में अन्तर हम उनकी विस्तार से विचार चर्चा प्रस्तुत नहीं है पर उनके नाम और क्रम में कुछ | नहीं करेंगे । यहाँ तो इनका नामग्राही परिचय भेद भी है। देना ही अभीष्ट-कार्य है । ये अशुभ भावनायें आत्मा को पतन की प्रथम-महाव्रत की पांच भावनायेंओर ले जाती है। इनसे मन दूषित एवं अशान्त १ ईर्या समिति रहता हैं, २ मनपरिज्ञा ___अतः ये हेय हैं। जो इनका आचरण करता ३ वचनपरिज्ञा हैं वह अपने अन्तःकरण रूप मंदिर को सजाता ४ आदान-निक्षेप-समिति नहीं हैं, संवारता भी नहीं है। ५ आलोकित-पानभोजन शुभ-भावना द्वितीय महावत की पांच भावनायेंभागमों तथा आगमोत्तर-साहित्य में शुभ १ अनुवीचि भाषण भावना के सन्दर्भ में बहुत ही विस्तार के साथ २ क्रोध प्रत्याख्यान विवेचन-विश्लेषण उपलब्ध होता है, शुभ भाव ३ लोभ प्रत्याख्यान नाओं के द्वारा व्रतों के परिपालना में अविचलता ४ अभय प्रत्याख्यान आती है। ज्योतिर्मयप्रभु महावीर ने अति ५ हास्य प्रत्याख्यान स्पष्ट शब्दों में कहा है कि"जो श्रमण पाँच महाव्रतों की पच्चीस तृतीय महाव्रत की पाँच भावनायेंभावनाओं में निरन्तर यत्नशील रहता है, मनो १.-अनुवीचि मितावग्रह याचन योगपूर्वक उन का चिन्तन-मनन करता है, उस २-अनुज्ञापित-पानभोजन को संसार में परिभ्रमण भी नहीं करना ३-अवग्रह का अवधारण पड़ता है।" ४-अभीक्ष्ण अवग्रह-याचन ५-साधर्मिक के पास से अवग्रह-याचन ___पंच महाव्रत रूप चारित्र से सम्बधित होने के कारण इन भावनाओं को चारित्र-भावना चतुर्थ महाव्रत की पॉच भावनायेंभी कहा जा सकता है, १-स्त्रीकथा का वर्जन १२-तत्त्वार्थ सूत्र ७।३। १३-उत्तराध्ययन ३१॥१७॥ १४-क-आचारांग-भावना अध्ययन ख-समवायांग समवाय २५ वाँ ग-प्रश्न व्याकरण सूत्र संवर द्वार अध्ययन ६ से १० तक । घ-तत्त्वार्थ सूत्र ७३। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003177
Book TitleTattvagyan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year1982
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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