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। वीराय नित्यं नमः॥
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श्रावक धर्म-अणुव्रत ।
सम्यक्त्वं मूलानि, पञ्चाणुव्रतानि गुणास्त्रयम् । शिक्षापदानि चत्वारि, व्रतानि गृहमेधिनाम् ॥१॥
"योगशास्त्र" भावार्थ-श्रावक को समकित मूलरूप पांच अणुव्रत तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत इस प्रकार के बारहव्रत को अङ्गीकार करना चाहिये। __व्रत ग्रहण करने वाले को मूल समकित विशुद्धि पर विशेष लक्ष्य रखना चाहिए, समकित सर्व क्रियायों का बीज रूप है जिस मनुष्य को श्रद्धा शुद्ध न हो पाई हो तो अपार क्रिया करने पर भी सम्यग् फल के देने
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