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________________ (६) आगम की प्रस्तावना ही पूरे आगम का सर्वांग स्वरूप प्रस्तुत करने में सक्षम होती है अतः पाठकों के लिये इसका भी एक महत्व हो जाता है। पाठक की इस भावना के अनुरूप भगवती सूत्र की प्रस्तावना को पुनः परिष्कृत और संशोधित करके यहाँ प्रस्तुत किया गया है। किन्तु प्रस्तावना तो पुस्तक का प्रथम आलोक है। द्वितीय आलोक में भगवती सूत्र के अन्तर्गत गणधर गौतम द्वारा प्रस्तुत विविध जिज्ञासाओं का तीर्थंकर महावीर द्वारा प्रस्तुत सुन्दर समाधान रूप विविध वार्तायें / दार्शनिक चर्चांयें हैं। ये विविध चर्चायें रोचक हैं, ज्ञानवर्धक हैं और पाठकों की जिज्ञासाओं को तृप्त करने वाली है। परिशिष्ट रूप में भगवती सूत्र के कुछ सुभाषितों का संचय भी है। इस प्रकार यह पुस्तक न केवल प्रस्तावना का संग्रह है, किन्तु भगवती सूत्र का सर्वांग स्वरूप दर्शन कराने वाली एक स्वतंत्र रचना का रूप ले लेती है। मुझे विश्वास है कि इसके स्वाध्याय से पाठकों को गुरु-गम्भीर भगवती सूत्र का नवनीत सहज ही प्राप्त हो सकेगा। स्व. आचार्य सम्राट श्री आनन्द ऋषि जी महाराज की भावना रहती थी कि श्रमण संघ के श्रमण - श्रमणी आगम- स्वाध्याय की दिशा में निरन्तर प्रगतिशील रहे और मैं उनको सतत प्रेरणा करता हूँ। स्व. आचार्य सम्राट की मनोभावनाओं को साकार रूप देना हम सबका कर्त्तव्य है, अतः अपने परमाराध्य आचार्य सम्राट की मनोभावना को मूर्त रूप देते हुये मुझे प्रसन्नता तथा सन्तोष का अनुभव होता है। इधर बहुत दिनों से श्रद्धेय गुरुदेव श्री का स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा है। जिस कारण समयाभाव रहने से मैं लेखन में यथेष्ट ध्यान नहीं दे सकता, फिर अचानक ही आचार्य सम्राट श्री आनन्द ऋषि जी महाराज का स्वर्गवास हो जाने से संघ के अनेक दायित्वों का भार भी आ गया है और जन-संपर्क भी बढ़ गया है। अतः पुस्तक के प्रूफ आदि संशोधन में साहित्य शिल्पी श्रीयुत श्रीचन्दजी सुराना ने हार्दिक सहयोग प्रदान किया है। गुरुभक्त श्रीमान मांगीलाल जी सोलंकी धर्मशीला श्राविका सौ. विजया बाई मांगीलाल जी सोलंकी तथा उनका धर्मानुरागी परिवार इस प्रकाशन में सहयोगी बना है। यह श्रुत-भक्ति सभी के लिये अनुकरणीय है । आशा है पुस्तक आगम रसिकों के लिये उपयोगी सिद्ध होगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only - आचार्य देवेन्द्र मुनि www.jainelibrary.org
SR No.003173
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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