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भगवती सूत्र एक ऐसा रत्नाकर है, जिसमें ज्ञान, विज्ञान की अमूल्य मणियों का अक्षय अनन्त भंडार छुपा है। विषय वस्तु की दृष्टि से भी भगवती सूत्र व्यापक है। अध्यात्म-विद्या और तत्वविद्या से लेकर सष्टि-विद्या, जीव-विज्ञान, परमाणु-विज्ञान, शरीर-विज्ञान, तक के अनेकानेक गंभीर विषयों की चर्चा इस आगम में विद्यमान है। जिस प्रकार वेदों में वर्तमान के अनेक जटिल विषयों की चर्चा के आदिसूत्र खोजे जाते हैं इसी प्रकार भगवती सूत्र में परमाणु-विज्ञान, शरीर-विज्ञान, औषधि-विज्ञान आदि अनेक आधारभूत सिद्धान्त खोजे जा सकते हैं। आवश्यकता है, स्पष्ट और तटस्थ दृष्टि से गंभीर अनुशीलन की।
लगभग १२ वर्ष पूर्व, जब आगम प्रकाशन समिति व्यावर से आगमों का हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशन प्रारम्भ हुआ, तब हमारे श्रमणसंघ के बहुश्रुत मनीषी स्व. युवाचार्य श्री मिश्रीमल जी म. "मधुकर" ने मुझे आग्रहपूर्वक कहा था कि समिति द्वारा प्रकाशित होने वाले आगमों पर विस्तृत प्रस्तावना लिखने का उत्तरदीयत्व मुझे संभालना हैं। यद्यपि यह मेरी अभिरुचि का विषय था और आगमों के प्रति मेरी गहरी श्रद्धा का परिपोषक भी था । फिर भी आगम पर प्रस्तावना लिखना अपने आप में एक दुरूह और श्रमसाध्य कार्य था। मूल आगम के अनुशीलन के साथ ही उसके व्याख्या ग्रन्थों का परिशीलन और अनेक सहायक ग्रन्थों का अध्ययन तथा फिर विषय वस्तु का वर्गीकरण करना काफी कठिन काम है। फिर भी अन्तरंग अभिरुचि होने के कारण मैंने यह उत्तरदायित्व स्वीकार कर लिया और क्रमशः आगमों पर प्रस्तावनाएँ लिखता गया। यहाँ, यह उल्लेखनीय है कि स्वर्गीय युवाचार्य श्री मधुकर मुनि जी एक उच्चकोटि के साधक तो थे ही, विनम्र विद्वान, आगम के प्रति असीम आस्थाशील सहज, सरल जीवन वाले दृढ़ संकल्पी संत थे। अस्तु, कण-कण से मेरु बने की सूक्ति के अनुसार धीरे-धीरे आगम प्रस्तावनाओं की सामग्री काफी विशाल रूप में तैयार होती चली गई।
आगम प्रकाशन समिति द्वारा भगवती सूत्र चार भागों में प्रकाशित हुआ है। इस आगम पर मैंने स्व-बुद्धि बलोदयानुसार काफी परिश्रम पूर्वक प्रस्तावना लिखी थी। जिसे स्वयं युवाचार्य श्री ने भी बहुत पसन्द की तथा अनेकानेक पाठकों ने, संत सतियों ने इसे पढ़कर हार्दिक उल्लास व्यक्त किया। उन्हीं की स्नेहमयी प्रेरणा
और हार्दिक अभिरुचि से प्रभावित होकर मैंने आगम-प्रस्तावना लिखने का निश्चय किया और अन्य सभी कार्यों को गौणकर इस श्रुत-समुपासना में प्रवृत्त हुआ। अनेक आगम विज्ञों का आग्रह भी था कि आगमों की इन प्रस्तावनाओं का स्वतंत्र रूप में पुस्तकाकार प्रकाशन होना चाहिये। स्व. युवाचार्य श्री भी चाहते थे कि इन प्रस्तावनाओं को स्वतंत्र पुस्तकाकार रूप दिया जाये। आज उनकी भावना साकार हो रही हैं।
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