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स्वकीय
वह सत्य, सत्य नहीं, जिसमें सरलता का स्पर्श नहीं, वह ज्ञान, ज्ञान नहीं, जिसमें आत्मा का विमर्श नहीं, आत्मा को जानने से परमात्मा ज्ञात होता है
और जीवन को जान लेने से, जगत विज्ञात होता है। जीवन और जगत: यही सबसे गंभीर पहेली है और यही सबसे बडा ज्ञातव्य है। जीव और, जगत को सम्यरूपेण जान लेने से बन्धन से मुक्ति मिलती है। मुक्ति क्या है ? चिन्मय स्वरूप की उपलब्धि ! जीवन और जगत विषयक सम्यक ज्ञान प्राप्त करने का सबसे मुख्य आधार है-आगम, भगवद् वाणी, सर्वज्ञ वचन) .. आज का वैज्ञानिक प्रयोगशाला में बैठकर अतीव सूक्ष्म दर्शक यंत्रों से, गणित
की गूढ़तम विधियों द्वारा जीव और जगत, आकाश और पाताल, अणु और परमाण, मन और बुद्धि; चेतना और अवचेतन संस्कारों आदि का विश्लेषण/विवेचन करना चाहता है। वह करता भी है। सत्य की तह तक पहुँचने का प्रयत्न भी करता है। परन्तु फिर भी एक सीमा से आगे उसका मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। बुद्धि की दौड़ की एक सीमा होती है। उस सीमा से आगे अनुमान चलता है, अनुमान से आगे अनुभव और अनुभव से भी आगे चलता है आत्मानुभव।
वैज्ञानिकों की शोध, धारणा, घोषणा और प्रस्थापना परानुभव आश्रित होती है, जबकि सर्वज्ञ वीतराग के वचन आत्मानुभव से उद्भूत होते हैं। वे आत्मद्रष्टा होते हैं। आत्मद्रष्टा का वचन कभी असत्य नहीं हो सकता। वीतराग की वाणी सर्वथा निर्दोष और निराबाध होती है। इसलिये जीव, जीवन और जगत् विषयक ज्ञान का सबसे आधारभूत स्रोत-आगम या भगवद् वाणी ही माना जा सकता है।
वर्तमान में भगवान महावीर की वाणी का प्रमुख आधार: अंग सूत्र हैं। अंग सत्र बारह हैं। बारहवाँ दृष्टिवाद वर्तमान में उपलब्ध नहीं होने के कारण ग्यारह अंग सूत्र ही प्रसिद्ध हैं। ग्यारह अंग सूत्रों में भगवती सूत्र पाँचवाँ अंग है। यह आकार प्रकार, विषय वस्तु आदि सभी दृष्टियों से विशाल है, वृहत्तम है। किसी समय में इसमें गणधर गौतम कृत ३६ हजार प्रश्न एवं भगवान महावीर के उत्तर इस आगम में संदृब्ध थे। परन्तु वर्तमान में वे सभी उपलब्ध नहीं है। फिर भी सैंकड़ों प्रश्न, अनेकों चर्चायें इस आगम में आज भी संग्रहीत हैं, जो हमारे ज्ञान का मुख्य स्रोत बनते हैं।
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