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________________ भगवती सूत्र : एक परिशीलन ५७ देना, पाँव पौंछना, रुग्ण हों तो दवा आदि का प्रबन्ध करना, रास्ते में डगमगा रहे हों तो सहारा देना, राजा आदि के क्रुद्ध होने पर आचार्य, संघ आदि की रक्षा करना, चोर आदि से बचाना, यदि किसी ने दोष का सेवन किया है तो उसको स्नेहपूर्वक समझा कर उसकी विशुद्धि करवाना, रुग्ण हो तो उसकी दवा-पथ्यादि का ध्यान रखना, रोगी के प्रति घृणा या ग्लानि न कर अग्लान भाव से सेवा करना। ___ आभ्यन्तर तप का चतुर्थ प्रकार स्वाध्याय है। 'सुष्ठु-आ मर्यादया अधीयते इति स्वाध्यायः।१४५ सत् शास्त्रों का मर्यादापूर्वक और विधिसहित अध्ययन करना स्वाध्याय है। दूसरी व्युत्पत्ति है-स्वस्य स्वस्मिन् अध्यायःअध्ययनम्-स्वाध्यायः। अपना, अपने ही भीतर अध्ययन, आत्मचिन्तन, मनन स्वाध्याय है। जैसे शरीर के विकास के लिये व्यायाम आवश्यक है, वैसे ही बुद्धि के विकास के लिए स्वाध्याय है। स्वाध्याय से नया विचार और नया चिन्तन उबुद्ध होता है। गलत आहार स्वास्थ्य के लिये अहितकर है, वैसे ही विकारोत्तेजक पुस्तकों का वाचन भी मन को दूषित करता है। अध्ययन वही उपयोगी है जो सद्विचारों को उबुद्ध करे। इसीलिये भगवान् महावीर ने उत्तराध्ययन में स्पष्ट शब्दों में कहा कि स्वाध्याय समस्त दुःखों से मुक्ति दिलाता है।१४६ अनेक भवों के संचित कर्म स्वाध्याय से क्षीण हो जाते हैं।१४७ स्वाध्याय अपने-आप में महान तप है। तैत्तिरीय आरण्यक में वैदिक ऋषि ने कहा-तपो हि स्वाध्याय:१४८ -स्वाध्याय स्वयं एक तप है। उसकी साधना-आराधना में कभी प्रमाद नहीं करना चाहिये। इसलिए तैत्तिरीय उपनिषद् में भी कहा है-स्वाध्यायान् मा प्रमदः।१४९ स्वाध्याय से बुद्धि निर्मल होती है। फर्श की ज्यों-ज्यों घुटाई होती है, त्यों-त्यों वह चिकना होता है। उसमें प्रतिबिम्ब झलकने लगता है, वैसे ही स्वाध्याय से मन निर्मल और पारदर्शी बन जाता है। आगमों के गम्भीर रहस्य उसमें प्रतिबिम्बित होने लगते हैं। आचार्य पतञ्जलि ने योगदर्शन में लिखा है कि स्वाध्याय से इष्टदेव का साक्षात्कार होने लगता है।१५० एक चिन्तक ने लिखा है कि स्वाध्याय से चार बातों की उपलब्धि होती है, स्वाध्याय से जीवन में सद्विचार आते हैं, मन में सत्संस्कार जागृत होते हैं। स्वाध्याय से अतीत के महापुरुषों की दीर्घकालीन साधना के अनुभवों की थाती प्राप्त होती है। स्वाध्याय से मनोरंजन के साथ आनन्द भी प्राप्त होता है। स्वाध्याय से मन एकाग्र और स्थिर होता है। जैसे अग्निस्नान करने से स्वर्ण मैलमुक्त हो जाता है वैसे ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003173
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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