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भगवतीत्र : एक परिशीलन ४७ आलोचना किसके पास करनी चाहिये? इस प्रश्न का समाधन व्यवहारसूत्र में मिलता है। सर्वप्रथम आलोचना आचार्य और उपाध्याय के समक्ष करनी चाहिये। उनके अभाव में साम्भोगिक बहुश्रुत श्रमण के पास करनी चाहिये। उनके अभाव में समान रूप वाले बहुश्रुत साधु के पास। उनके अभाव में जिसने पूर्व में संयम पाला हो और जिसे प्रायश्चित्तविधि का ज्ञान हो उस पडिवाई (संयमच्युत) श्रावक के पास। उसका भी अभाव होने पर जिनभक्त यक्ष आदि के पास। इनमें से सभी का अभाव हो तो ग्राम या नगर के बाहर पूर्व-उत्तर दिशा में मुँह कर विनीत मुद्रा में अपने अपराधों
और दोषों का स्पष्ट उच्चारण करना चाहिए और अरिहन्त-सिद्ध की साक्षी से स्वतः ही शुद्ध हो जाना चाहिये ।११०
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