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________________ भगवती सूत्र : एक परिशीलन २५ चित्रात्मक चिह्न नहीं हैं, उसके चिह्न तो अक्षरात्मक ध्वनियों के अभिव्यंजक हैं। यह सत्य है कि चीनी लिपि भी प्राचीन है। लेकिन प्राचीन होने के कारण उसे ब्राह्मीलिपि के साथ जोड़ना संगत नहीं है । बूलर का अभिमत है कि उत्तरी सेमेटिक लिपि से ब्राह्मी का उद्भव हुआ है। थोड़े बहुत मतभेद के साथ वेबर, बेनफे, वेस्टरगार्ड, ह्विटनी, जॉनसन, विलियम जॉन्स आदि ने भी यही विचार व्यक्त किए हैं। बूलर की दृष्टि से ईस्वी सन् के लगभग आठ सौ वर्ष पूर्व सेमेटिक अक्षरों का भारत में प्रवेश हुआ । ७० कितने ही विद्वानों का यह भी मानना है कि भारत में जब लेखनकला का विकास नहीं हुआ था तब फिनिशिया ७१ में शिक्षा और लेखन का विकास हो चुका था। भारत के व्यापारी जब व्यापार हेतु फिनिशिया जाते थे तब व्यापार की सुविधा हेतु उन्होंने फिनिशियन लिपि का अध्ययन किया और उन व्यापारियों के साथ ही फिनिशियन लिपि भारत में आई। उस लिपि का संशोधन और परिष्कार कर ब्राह्मणों ने एक लिपि का निर्माण किया । ब्राह्मणों के द्वारा निर्मित होने के कारण उस लिपि का नाम ब्राह्मी हुआ । डॉ. राजबली पाण्डेय ने एक अभिनव कल्पना की है। उनका अभिमत है कि भारत से कुछ व्यक्ति फिनिशिया गये। वे ब्राह्मीलिपि के जानकार थे। वे वहीं पर बस गए। वहाँ पर बसने के कारण ब्राह्मीलिपि वहाँ के वातावरण से प्रभावित हुई । यही कारण है कि फिनिशियन और ब्राह्मी दोनों ही लिपियों में डॉ. पाण्डेय ने अपने मत को प्रमाणित करने के लिए ऋग्वेद की ६-५१, १४; ६१, १ ऋचाएँ प्रस्तुत की हैं। ब्राह्मीलिपि का ही विकास फिनिशियन लिपि है। टेलर, सेथ आदि विज्ञों का अभिमत है कि ब्राह्मी का विकास दक्षिणी सेमेटिक लिपि से हुआ है। तो कितने ही विद्वान् दक्षिणी सेमेटिक शाखा अरबी लिपि से ब्राह्मीलिपि का उद्भव मानते हैं। पर गहराई से चिन्तन करने पर दक्षिणी सेमेटिक लिपि या उसकी शाखालिपियों से ब्राह्मी का मेल नहीं बैठता है। यदि यह कहा जाय कि अरबवासियों के साथ भारतवर्ष का सम्पर्क अतीत काल से था, इस कारण अरबी से ब्राह्मी की उत्पत्ति हुई, किन्तु इस कथन और तर्क में वजन नहीं है। डॉ. राइस डेविड्स का अभिमत है कि एक ऐसी लिपि पहले प्रचलित थी जो सेमेटिक अक्षरों के उद्भव के पूर्व ही यूफ्रेटिस नदी की घाटी में विकसित सभ्यता में प्रचलित थी । उस पुरानी लिपि से ब्राह्मीलिपि का सीधा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003173
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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