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२४ भगवती सूत्र : एक परिशीलन
ललितविस्तर बौद्धपरम्परा का संस्कृत भाषा में लिखित एक सुप्रसिद्ध ग्रन्थ है। उस ग्रन्थ में ६४ लिपियों का उल्लेख है। उनमें कितनी ही लिपियों का आधार देश-विशेष, प्रदेश-विशेष या जाति-विशेष कहा है। उन ६४ लिपियों में सर्वप्रथम ब्राह्मीलिपि का नाम आता है।६५ उसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में वहाँ पर चिन्तन नहीं किया गया है।
जैन दृष्टि से ब्राह्मीलिपि के सर्जक भगवान् ऋषभदेव थे। भगवान् ऋषभदेव ने अपने ज्येष्ठ पुत्र भरत को ७२ कलाओं की शिक्षा प्रदान की। द्वितीय पुत्र बाहुबली को प्राणीलक्षण का ज्ञान कराया। अपनी पुत्री ब्राह्मी को १८ लिपियों का और द्वितीय पुत्री सुन्दरी को गणित विद्या का परिज्ञान कराया। ब्राह्मी ने उन लिपियों को प्रसारित किया। १८ लिपियों में मुख्य लिपि ब्राह्मी के नाम से विश्रुत है|६६ समवायाङ्ग६७ में ब्राह्मीलिपि के ४६ मातृकाक्षर यानी मूल अक्षर बतलाये हैं और १८ प्रकार की लिपियों में प्रथम लिपि का नाम ब्राह्मीलिपि है। प्रज्ञापना६८ में भी १८ लिपियों के नाम मिलते हैं पर समवायाङ्ग६९ से कुछ पृथक्ता लिए हुए हैं।
वैदिक, बौद्ध और जैन तीनों ही परम्पराओं में ब्राह्मीलिपि की उत्पत्ति के सम्बन्ध में पृथक्-पृथक् मत हैं। डॉ. अल्फ्रेड मूलर, जेम्स प्रिन्सेप तथा सेनार्ट आदि विद्वानों का अभिमत है कि ब्राह्मीलिपि का उद्गम-स्रोत यूनानी लिपि है। सेनार्ट ने इस सम्बन्ध में चिन्तन करते हुए लिखा है कि सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया और यूनानियों के साथ भारतीयों का सम्पर्क हुआ। भारतीयों ने यूनानियों से लेखनकला सीखी और उसके आधार से उन्होंने ब्राह्मीलिपि की रचना की। उपर्युक्त मत का खण्डन बूलर और डिरिंजर नामक विद्वानों ने किया है। उनका मन्तव्य है कि लिपिकला भारत में पहले से ही विकसित थी। यदि चन्द्रगुप्त मौर्य के समय ब्राह्मीलिपि की उत्पत्ति होती तो उसके पौत्र अशोक के समय वह लिपि इतनी अधिक कैसे विकसित हो सकती थी ?
फ्रेन्च विद्वान् कुपेटी ने ब्राह्मीलिपि के सम्बन्ध में एक विचित्र कल्पना की है। उनका अभिमत है कि ब्राह्मीलिपि की उत्पत्ति चीनी लिपि से हुई है। पर लिपिविज्ञान के विशेषज्ञों का यह स्पष्ट अभिमत है कि चीनी और ब्राह्मी लिपि में किसी भी प्रकार का मेल नहीं है। चीनी लिपि में वर्णात्मक और अक्षरात्मक ध्वनियाँ नहीं हैं; उसमें शब्दात्मक ध्वनियों के परिचय के लिए चित्रात्मक चिह्न हैं और वे चिह्न अत्यधिक मात्रा में हैं। जबकि ब्राह्मीलिपि में
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