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भगवती सूत्र : एक परिशीलन २३ इस प्रकार वर्गों के साथ नमोक्कार महामन्त्र का जप करने का संकेत मन्त्रशास्त्र के ज्ञाता आचार्यों ने किया है। अन्य अनेक दृष्टियों से नमस्कार महामन्त्र के सम्बन्ध में चिन्तन किया गया है। विस्तार भय से उस सम्बन्ध में हम उन सभी की चर्चा नहीं कर रहे हैं। जिज्ञासु तत्सम्बन्धी साहित्य का अवलोकन करें तो उन्हें चिन्तन की अभिनव सामग्री प्राप्त होगी और वे नमस्कार महामन्त्र के अद्भुत प्रभाव से प्रभावित होंगे।
नमस्कार महामन्त्र को आचार्य अभयदेव ने भगवती सूत्र का अंग मानकर व्याख्या की है। आवश्यकनियुक्ति में नियुक्तिकार ने स्पष्ट शब्दों में लिखा है-पंचपरमेष्ठियों को नमस्कार कर सामायिक करनी चाहिए। यह पंच- नमस्कार सामायिक का एक अंग है।६० इससे यह स्पष्ट है कि नमस्कार महामन्त्र उतना ही पुराना है जितना सामायिक सूत्र। सामायिक आवश्यकसूत्र का प्रथम अध्ययन है। आचार्य देववाचक ने आगमों की सूची में आवश्यकसूत्र का उल्लेख किया है। सामायिक के प्रारम्भ में और उसके अन्त में नमस्कार मन्त्र का पाठ किया जाता था। कायोत्सर्ग के प्रारम्भ और अन्त में भी पंचनमस्कार का विधान है। नियुक्ति के अभिमतानुसार नन्दी और अनुयोगद्वार को जानकर तथा पंचमंगल को नमस्कार कर सूत्र को प्रारम्भ किया जाता है|६१ आचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने पंचनमस्कार महामन्त्र को सर्वसूत्रान्तर्गत माना है।६२ उनके अभिमतानुसार पंचनमस्कार करने के पश्चात् ही आचार्य अपने मेधावी शिष्यों को सामायिक आदि श्रुत पढ़ाते थे।६३ इस तरह नमस्कार महामन्त्र सर्वसूत्रान्तर्गत है। आवश्यकसूत्र गणधरकृत है तो व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती) भी गणधरकृत ही है। इस दृष्टि से इस महामन्त्र के प्ररूपक तीर्थंकर हैं और सूत्र में आबद्ध करने वाले गणधर हैं। जिन आचार्यों ने महामन्त्र को अनादि कहा है, उसका यह अर्थ है-तत्त्व या अर्थ की दृष्टि से वह अनादि है। ब्राह्मीलिपि
नमस्कार महामन्त्र के पश्चात् भगवती में 'नमो बंभीए लिवीए' पाठ है। भारत में जितनी लिपियाँ हैं, उन सब में ब्राह्मीलिपि सबसे प्राचीन है। वैदिक दृष्टि से ब्राह्मी शब्द ब्रह्मा से निष्पन्न है। त्रिदेवों में ब्रह्मा विश्व का स्रष्टा है। उसने सम्पूर्ण विश्व की रचना की। उसी से इस लिपि का प्रादुर्भाव हुआ। नारद स्मृति में लिखा है-यदि ब्रह्मा लिखित या लेखनकला अथवा लिपिरूप उत्तम नेत्र का सर्जन नहीं करते तो इस जगत् की शुभ गति नहीं होती|६४
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