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२३६ भगवती सूत्र : एक परिशीलन
बहुश्रुत-जो अंगों के पारगामी हैं, वे बहुश्रुत कहे जाते हैं।
ब्रह्मचर्य-ब्रह्म शब्द का अर्थ आत्मा है। उस आत्मा में विचरण करनालीन होना ब्रह्मचर्य है। परन्तु स्त्री के त्याग रूप ब्रह्मचर्य की भी लोक व परमार्थ दोनों क्षेत्रों में बहुत महत्ता है। वह ब्रह्मचर्य अणुव्रत रूप से भी ग्रहण किया जाता है और महाव्रत रूप से भी।
ब्राह्मण-तप, शास्त्रज्ञान और जाति इन तीन से युक्त को ब्राह्मण कहते हैं। जन्म दो प्रकार का होता है--गर्भ से और संस्कारों से। गर्भ से जन्म लेकर पुनः संस्कार को उत्पन्न करे वह द्विज दो बार जन्मा है। यथार्थतः ब्राह्मण वह है जो ब्रह्मचर्य का पालन करता है।
भव्य-जिसमें सम्यग्दर्शन आदि भाव प्रकट होने की योग्यता है। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि सभी भव्य जीव अवश्य मुक्त होंगे। यदि जीव सम्यक् पुरुषार्थ करे तो नियम से संख्यात, असंख्यात या अनंतकाल में अवश्य मोक्ष को प्राप्त करते हैं, अन्यथा नहीं। पर अनेक भव्य ऐसे हैं, जो कभी भी अनुरूप पुरुषार्थ नहीं करेंगे। इसके विपरीत जीव कभी भी मोक्ष को प्राप्त नहीं कर पाते हैं। जो जीव सिद्ध पद की प्राप्ति के योग्य हैं उन्हें भवसिद्ध कहते हैं। और उनसे विपरीत जो जीव संसार से छूटकर मोक्ष प्राप्त नहीं करते, नहीं करेंगे, वे अभव्य हैं।
भाषा-साधारण बोलचाल को भाषा कहते हैं। मनुष्यों की भाषा साक्षरी तथा पशु-पक्षियों की निरक्षरी होती है। आमंत्रणी, निमंत्रणी आदि के भेद से भी उसके अनेक भेद हैं।
भिक्षा-साम्यरस से ओत-प्रोत साधुजन लाभ-अलाभ में समता रखते हुए दिन में यथाकाल दाता से भ्रमर के समान थोड़ा-थोड़ा भोजन ग्रहण करते हैं, पर याचना रूप दीन व हीन वृत्ति जाग्रत नहीं होने देते। इस प्रकार मात्र संयमादि षट् कारणों से यथालब्ध आहार का ग्रहण भिक्षा है। ___ मण्डिक-मण्डिक मौर्यसन्निवेश के रहने वाले वसिष्ठ गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता धनदेव और माता विजयादेवी थी। इन्होंने ३५० शिष्यों के साथ त्रेपन वर्ष की अवस्था में प्रव्रज्या ली। ६७ वर्ष की अवस्था में केवलज्ञान और ८३ वर्ष की अवस्था में गुणशील चैत्य में निर्वाण प्राप्त किया। ये भगवान के छठे गणधर थे।
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