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________________ भगवती सूत्र : एक परिशीलन २३५ को " आकाश प्रदेश" कहते हैं। और वह अनन्त परमाणुओं को अवकाश देने में समर्थ है। अथवा स्कन्ध या देश से मिले हुए द्रव्य के अति सूक्ष्म (जिसका दूसरा हिस्सा न हो सके) विभाग को प्रदेश कहते हैं । प्रध्वंसाभाव-कार्य के नाश होने के पश्चात् उत्पन्न होने वाले अभाव को प्रध्वंसाभाव कहते हैं। जैसे-घट का नाश होने पर उत्पन्न होने वाले कपाल ( टीकरा ) घट का प्रध्वंसाभाव हैं। प्रभास-ये राजगृह के निवासी कौडिन्य गोत्रीय ब्राह्मण थे। पिता का नाम बल और माता का नाम अतिभद्रा था। सोलह वर्ष की अवस्था में आपने ३०० शिष्यों के साथ श्रमण धर्म स्वीकार किया। आठ वर्ष तक छद्मस्थावस्था में रहे और १६ वर्ष तक केवली अवस्था में भगवान महावीर के सर्वज्ञ जीवन के पच्चीसवें वर्ष में राजगृह में मासिक अनशन पूर्वक ४० वर्ष की अवस्था में निर्वाण को प्राप्त हुए। ये भगवान के अंतिम गणधर थे। प्रमाण - जिसके द्वारा पदार्थ जाना जाता है, वह प्रमाण है। प्रमाण ज्ञान वस्तु को सब दृष्टिबिन्दुओं से जानता है अर्थात् वस्तु के सर्वांशों को विषय करने वाला यथार्थ ज्ञान प्रमाण है। प्रमाता - जो वस्तु को पाने या छोड़ने की इच्छा करता है, वह प्रमाता अर्थात् आत्मा-ज्ञाता है। प्रमाद -संज्वलन कषाय और नव नोकषाय इन तेरह के तीव्र उदय का नाम प्रमाद है ।२४ शुभ उपयोग के अभाव को या शुभकार्यों में अनुद्यमपन को प्रमाद कहते हैं। प्राग्भाव - कार्य के पहले का अभाव अर्थात् वर्तमान पर्याय का पूर्व पर्याय में अभाव, प्राग्भाव है। जैसे - मिट्टी का पिण्ड घट का प्राग्भाव है। प्रायश्चित्त-संचित पाप का छेदन करना प्रायश्चित्त है अथवा अपराध मलीन चित्त को शुद्ध करने वाला जो कृत्य है, वह प्रायश्चित्त है । प्रायश्चित्त आलोचना आदि के भेद से नव प्रकार का है । बंध - कर्म प्रदेशों का आत्म-प्रदेशों में एक क्षेत्रावगाह हो जाना बन्ध है । क्रोधादि परिणाम भावबंध है। और कषाय सहित होने से जीव कर्मयोग्य पुद्गलों को ग्रहण करके आत्म प्रदेशों के साथ एकमेक कर देता है, वह द्रव्यबंध है। Jain Education International For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org
SR No.003173
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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