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परिशिष्ट
पारिभाषिक शब्द - कोष
अंग-अंगसूत्र बारह हैं- आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, भगवती, ज्ञाताधर्म कथा, उपासक दशांग, अनुत्तरोपपातिक, अन्तकृतदशांग, प्रश्नव्याकरण, विपाक और दृष्टिवाद ।
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अंग प्रविष्ट - तीर्थङ्करों द्वारा उपदिष्ट ज्ञान को उनके परम मेधावी साक्षात् शिष्य गणधरों ने ग्रहण करके जो द्वादशांगी रूप में सूत्रबद्ध किया वह अङ्गप्रविष्ट है।
अंगबाह्य - कालदोषकृत बुद्धि, बल और आयु की अल्पता देखकर गणधरों के पश्चाद्वर्ती शुद्ध बुद्धि आचार्यों द्वारा रचे गये शास्त्र अंग बाह्य हैं।
अंगोपांग नामकर्म - जिस कर्म स्कन्ध के उदय से शरीर के अंग और उपांगों की निष्पत्ति होती है। अथवा शरीरगत अंगों और उपांगों का निमित्तभूत कर्म ।
अंतः कोटा कोटी-करोड़ के ऊपर और करोड़ा - करोड़ के नीचे अंतकृत केवली- जिन्होंने संसार का अंत कर दिया है।
अंतकृत् केवली - जिन्होंने संसार का अंत कर दिया है।
"संसारस्यान्तः कृतौ यैस्तेऽन्तकृतः (केवलिनः) -धवला अंतरात्मा - बाह्य विषयों से हटकर अन्तर की ओर झुकी हुई जीव की दृष्टि अन्तरात्मा है ।
अंतराय कर्म - अन्तराय का अर्थ विघ्न है। जो कर्म जीव के गुणों में बाधक बनता है, वह अन्तराय कर्म है।
“विघ्नकरणमन्तरायस्य" - तत्त्वार्थ सूत्र ६ / २७ "
" अन्तरमेति गच्छतीत्यन्तरायः "-धवला -
अर्थात् जो दाता-देय आदि के अन्तर मध्य में आ जाता है . वह अन्तराय कर्म है।
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