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भगवती सूत्र : एक परिशीलन २१९ अंतर्मुहूर्त - मुहूर्त से कम और आवली से अधिक समय । अकम्पित- ये मिथिला निवासी गौतम गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता देव और माता जयन्ती थी। तीन सौ छात्रों के साथ ४८ वर्ष की अवस्था में दीक्षा ली । ५७ वर्ष की अवस्था में केवलज्ञान प्राप्त किया और भगवान महावीर के अंतिम वर्ष में ७८ वर्ष की अवस्था में राजगृह के गुणशीलक चैत्य में निर्वाण प्राप्त किया। ये भगवान के ग्यारह गणधरों में से अष्टम गणधर थे।
अक्रियावादी- " नास्त्येव जीवादिकः पदार्थः इत्येवंवादिनोक्रियावादिनः " - सूत्र वृत्ति १२ - ११८ ( जो जीवादि पदार्थों का अस्तित्व स्वीकार नहीं करता वह अक्रियावादी है ।)
अगुरुलघुगुण - जिस गुण के निमित्त से द्रव्य का द्रव्यपन सदा बना रहे अर्थात् द्रव्य का कोई गुण न तो अन्य गुण रूप हो सके और न कोई द्रव्य अन्य द्रव्य रूप हो सके। तथा द्रव्य के गुण बिखरकर पृथक्-पृथक् नहीं हो सकें। और जिसके निमित्त से प्रत्येक द्रव्य में तथा उसके गुणों में प्रति समय षट्गुण हानि - वृद्धि होती रहे, वह अगुरुलघु गुण है। अगुरुलघु गुण का यह सूक्ष्म परिणमन वचन के अगोचर है।
अगुरुलघु नाम कर्म - जिस कर्म के उदय से जीव लोहपिण्डवत् न तो भारी हो और न आक की रूई के समान हल्का हो ।
अग्निभूति - इन्द्रभूति गौतम के मझले भाई । ४६ वर्ष की अवस्था में दीक्षा ग्रहण की, १२ वर्ष छद्मस्थावस्था में रहे और सोलह वर्ष तक केवली अवस्था में विचरण किया। भगवान महावीर के निर्वाण से दो वर्ष पूर्व राजगृह के गुणशीलक चैत्य में मासिक अनशन कर चौहत्तर वर्ष की अवस्था में निर्वाण को प्राप्त हुए।
अचलभ्राता-ये कोशला ग्राम के निवासी हारीत गोत्रीय ब्राह्मण थे। आपके पिता वसु और माता नन्दा थीं। तीन सौ छात्रों के साथ ४६ वर्ष की अवस्था में श्रमणत्व स्वीकार किया। १२ वर्ष छद्मस्थ रहे और चौदह वर्ष केवली अवस्था में विचरण कर ७२ वर्ष की अवस्था में मासिक अनशन के साथ राजगृह के गुणशीलक चैत्य में परिनिवृत्त हुए। ये भगवान महावीर के नवम गणधर थे।
अजीव - जिसमें चेतना न पायी जाय।
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