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२१६ भगवती सूत्र : एक परिशीलन सुप्रत्याख्यान और दुष्प्रत्याख्यान
गौतम भन्ते ! यदि कोई ऐसा कहे, कि "मैं सर्वप्राण, सर्वभूत, सर्वजीव और सर्वसत्त्व की हिंसा का प्रत्याख्यान करता हूँ," तो क्या उसका वह प्रत्याख्यान, सुप्रत्याख्यान है या दुष्प्रत्याख्यान ?
महावीर - गौतम ! उस आत्मा का स्यात् सुप्रत्याख्यान है और स्यात् दुष्प्रत्याख्यान है।
गौतम भन्ते ! इसका क्या अभिप्राय है ?
महावीर - जिसको यह भान नहीं कि ये जीव हैं और ये अजीव, ये त्रस हैं और ये स्थावर, उसका वैसा प्रत्याख्यान, दुष्प्रत्याख्यान है। वह मृषावादी है । किन्तु जिसे यह ज्ञात है, कि ये जीव हैं और ये अजीव, ये त्रस हैं और ये स्थावर, उसका वैसा प्रत्याख्यान सुप्रत्याख्यान है, वह सत्यवादी है ।
- भगवती सूत्र शतक ७, उ. २, सू. १
आत्मा है या नहीं
गौतम भन्ते ! रत्नप्रभा पृथ्वी आत्मा है या अन्य है ?
महावीर - गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी स्यादात्मा है, स्यादात्मा नहीं है।
रत्नप्रभा पृथ्वी स्यादवक्तव्य है। अर्थात् आत्मा है, आत्मा नहीं है - यह युगपत् कहा नहीं जा सकता।
उक्त तीन भंगों को सुनकर गौतम पुनः जिज्ञासा उपस्थित करते हैंभन्ते ! आप एक ही पृथ्वी को विभिन्न प्रकार से किस अपेक्षा से प्रतिपादन करते हैं ?
महावीर - आयुष्मन् गौतम ! आत्मा स्व के आदेश से आत्मा है । पर के आदेश से आत्मा नहीं है और तदुभयादेश से अवक्तव्य है।
रत्नप्रभा की तरह ही गौतम ने सभी पृथ्वी, सभी देवलोक और सिद्धशिला के विषय में पूछा। भगवान ने सभी प्रश्नों का उत्तर स्याद्वाद दृष्टि से दिया।
- भग. शतक १२, उ. १०, सूत्र १५
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